सामाजिक

आत्महत्या की राजनीति

“आत्महत्या” एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही शरीर में कंपकंपी सी होने लगती है। अपने ही हाथों अपने जीवन का असमय अंत करना, उस जीवन का जो उस सर्वशक्तिमान परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ उपहार है, किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं है। आत्महत्या निश्चित ही मनुष्य द्वारा किए जा सकने वाले निकृष्टतम कार्यों में से एक है जिसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। आज के युग में जैसे-जैसे मनुष्य में सहनशीलता की कमी होती जा रही है, जैसे-जैसे जीवन मूल्यों में गिरावट आती जा रही है वैसे-वैसे आत्महत्या करने वालों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। आत्महत्या करने वाला व्यक्ति घोर स्वार्थी एवं आत्मकेंद्रित होता है जो अपने परिवार एवं मित्रों को होने वाले दुख एवं उन्हें इससे होने वाली कठिनाईयों की अवहेलना करके कायरों की भाँति मैदान छोड़कर भाग जाना चाहता है जो कि पूर्णतः गलत है।
आत्महत्या की प्रवृत्ति मनुष्य में चिरकाल से पाई जाती है परंतु किसी भी कालखण्ड में इसे सत्ता का या धर्म का समर्थन नहीं मिला। सनातन धर्म में मनुष्य द्वारा अपने जीवन को समाप्त करने के अधिकार को मान्यता दी गई है परंतु अहिंसा के मार्ग द्वारा ही। इसे “प्रयोपवेशन” कहा गया है जिसमें भोजन के त्याग द्वारा मृत्यु को आमंत्रित किया जाता है। जैन धर्म में भी यही परंपरा है जिसे “संथारा” कहा जाता है परंतु ये मार्ग केवल और केवल उन्हीं लोगों को उपलब्ध है जिनके जीवन में कोई इच्छा या महत्वकांक्षा शेष न रही हो। किसी समस्या से पलायन करने वालों के लिए या अपनी परेशानियों से मुक्ति चाहने वालों के लिए ये मार्ग उपलब्ध नहीं। भारतीय दंड संहिता के अनुसार भी आत्महत्या एक दंडनीय अपराध है। अगर व्यक्ति बच गया तो उसको अवश्य दंडित किया जाता है वरना उसके परिवार को भी कानूनी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं।
दुर्भाग्यवश इन दिनों भारत के कुछ दुष्ट राजनेता एवं मीडीया के कुछ भ्रष्ट लोग आत्महत्याओं के महिमामंडन का निंदनीय कार्य कर रहे हैं। अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए किसी के शव पर राजनीति करने वाले, किसी की चिता पर अपनी रोटी सेंकने वाले ये लोग मनुष्य कहलाने के लायक भी नहीं है जिन्हें हम अपना कर्णधार बनाए बैठे हैं। जिस कार्य के लिए कर्ता एवं उसके परिवार को दण्ड का प्रावधान है उस कार्य का पुरस्कार देने की मानों होड़ सी मची है। ऐसा करके ये लोग क्या साबित करना चाहते हैं ये तो ईश्वर ही जाने। परंतु एक करोड़, दो करोड़ की भारी भरकम राशि की घोषणा कर ये नीच लोग कितने ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ये अवश्य ही शोध का विषय हो सकता है।
प्राचीन एथेंस में जो व्यक्ति राज्य की अनुमति के बिना आत्महत्या करता था उसे सामान्य रूप से दफन होने का अधिकार नहीं मिलता था। उस व्यक्ति को शहर से बाहर अकेले दफन किया जाता था, उसकी कब्र पर किसी प्रकार का चिह्न नहीं लगा होता था। ईस्वी सन सोलह सौ सत्तर में फ्रांस के लुई चौदहवें द्वारा एक राजाज्ञा जारी की गयी थी, जिसमें आत्महत्या करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान था। मृत व्यक्ति के शरीर को चेहरा जमीन की ओर रखते हुए सड़क पर घसीटा जाता था और फिर उसे लटका दिया जाता था, जिसके बाद कूड़े के ढ़ेर पर डाल दिया जाता था। इसके साथ ही उस व्यक्ति की सारी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। ऐतिहासिक रूप से इसाई चर्च के वे लोग जो आत्महत्या का प्रयास करते थे समाज से बहिष्कृत कर दिए जाते थे और वे जो मर जाते थे उनको निर्धारित कब्रिस्तान से बाहर दफनाया जाता था। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन में आत्महत्या का प्रयास को हत्या के प्रयास के तुल्य माना जाता था और इसकी सजा फाँसी तक थी। ऑस्ट्रेलिया में हालांकि आत्महत्या एक अपराध नहीं है परंतु इसकी सलाह देना, उकसाना या इसमें सहायता देना और किसी को आत्महत्या करने के लिए सहायता करना अपराध की श्रेणी में है और कानून विशिष्ट रूप से किसी व्यक्ति को यथोचित रूप से आवश्यक दबाव बनाने की अनुमति देता है जो किसी दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या के प्रयास से रोकने के लिए हो।
आज आवश्यकता है इस देश की सर्वोच्च सत्ता एवं सर्वोच्च न्यायालय को इस स्थिति के प्रति स्वतः संज्ञान लेने की। ये जितने भी राजनेता या अन्य लोग किसी व्यक्ति की आत्महत्या के बाद उसके परिवार को भारी-भरकम अनुदान राशि देने की घोषणा कर रहे हैं इन सबको अन्य व्यक्तियों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का दोषी मानकर इन पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। आत्महत्या करने वालों, उन्हें इसके लिए प्रेरित करने वालों, आत्महत्या के बाद उन्हें नायक या शहीद की तरह पेश करने वालों एवं मरणोपरांत उनके नाम पर बड़ी-बड़ी अनुदान राशि की घोषणा करके अपनी विकृत मानसिकता का परिचय देने वालों, इन सब के खिलाफ कठोर कानून बनाने होंगे। टीवी चैनलों एवं समस्त मीडिया के लिए इस प्रकार के दिशा-निर्देश बनने चाहिए कि इस प्रकार की घातक मनोवृत्ति को किसी भी स्थिति में महिमामंडित न किया जा सके। हमारे देश की जनता अपने खून-पसीने की गाढ़ी कमाई कर के रूप में इसलिए देती है कि देश का विकास किया जा सके न कि इसलिए भ्रष्ट राजनेता अपनी ओछी राजनीति चमकाने के लिए ऐसे व्यक्तियों को बाँटते फिरें जिनका कार्य कानून के अनुसार अपराध की श्रेणी में आता है। जिस कार्य के लिए संविधान के अनुसार दण्ड मिलना चाहिए उस कार्य के लिए पुरस्कार केवल इस महान भारत देश में ही संभव है। ये वृत्ति जितनी शीघ्र हो सके बंद होनी ही चाहिए।

मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]