चार मुक्तक (शीर्षक “तस्वीर”)
१.
पास मेरे सिर्फ तेरी एक ही तो तस्वीर थी
वही मेरे सुनहरे ख्वाबों की ताबीर थी
अाँसु के खारे जल ने नक्श उसके धो दिये
एक ही दिन में मेरी लुट गई जागीर थी।
२.
न मैं लैला न मै सोहिनी और न ही हीर हूँ
राधा की मैं प्रीत हूँ और मीरा की पीर हूँ
किसी उपमा और तुलना से न है मेरा वास्ता
रंग जिसमें सौम्य सारे मैं तो वह तस्वीर हूँ।
३.
देख-देख तस्वीर तेरी हम तो जीते हैं
शोख चटक सारे उसके रंग पीते हैं
पूछना है तो पूछिये तस्वीर से अपनी
युग महीनों साल से हम कैसे जीते हैं।
४.
मिट गये हैं लफ़्ज़ सारे दिल से तेरी तहरीर के
देखते ही रह गये हम खेल इस तकदीर के
नयनों के नलके खुल गये नीर और इतना बहा
कि धुल गये सब रंग साजन उस तेरी तस्वीर के।
— कमल कपूर