कविता “चौपई” *महातम मिश्र 10/11/2016 पहला पहला मिलन बिभोर, चाहत बढ़ जाती है जोर अच्छा लगता कैसे शोर, चोरी चुपके आ चित चोर।। मिलन आतुरी आँखें चुराय, कुछ घबराती औ शरमाय चले चकोरी आस लगाय गलागली तनमन बहलाय।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी