गीतिका/ग़ज़ल

अश्क

लबों पे ना आते हैं दिल के फ़साने
निगाहों की नज़रों से होती हैं बातें

मिलेंगे वो हमसे तो कह देंगे उनसे
निगाहों में रख के ही कटती हैं रातें

मिलना है उनसे मेरे दिल की हसरत
इस दिल ने तलाशे है लाखों बहाने

गम हो जिगर में या लड्डू फूटे हों
आते हैं आंसू हाल ए दिल बताने

अश्कों ने छोड़ा है पलकों से नाता
ये कहती हैं क्या समझो क्या बोलती हैं

ये खामोशियों की जुबां है ऐ यारों
ये चुपके से दिल की परत खोलती हैं

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।