लघुकथा

जलजला

“आज देवोत्थान है तारा … चलो गंगा स्नान कर आते हैं .. लेकिन उसके पहले थोड़ा नाश्ते की तैयारी कर लेते हैं ताकि जब हम गंगा स्नान से लौटें तो किसी को कोई परेशानी ना हो।” तारा की सास सावित्री देवी आवाज लगाई
“किसी को कोई परेशानी नहीं होगी अम्मा जी … हम रोज पांच बजे उठते हैं तो बच्चों का टिफिन आसानी से बन जाता है। अभी तो सुबह के 3 ही बजे हैं। हम इतनी जल्दी क्यूँ जा रहे हैं ? पौ फटने में तो अभी बहुत देर है “….
“इस समय ही गंगा में काफी भीड़ होगी। .. कार्तिक स्नान करने वाले इसी समय गंगा किनारे जुटने लगते हैं बहू तारा। .. सत्संग लाभ होगा हमें भी ”
“ठीक है .. मैं तुरंत आई ”
“क्या तुम रमन को फोन की थी कि वो अपने परिवार संग हमलोगों से आकर मिले ?”
“नहीं अम्मा जी ! आपकी बताई बातें याद हो आई। ”
“कौन सी बातें ?”
“ननदोंई अपने पैसे, जमीन को साले की पत्नी और उनके बच्चों के नाम पर खर्च करते हैं , ये सोचते हुए कि कुछ दिनों के बाद उन्हें मिल जायेगा .. ससुराल से मिले तौहफे पर आयकर मुक्त होता । लेकिन पूरी जिन्दगी वापसी की प्रतीक्षा रह जाती है कोई नहीं लौटाता है। ”
“अरे हाँ ! चलो छोड़ो ! अच्छा की कि तुम फोन नहीं की। …. मेरी बताई बातें तुम याद रखी। मैं ही भूल गई। … मैं कपड़े का गट्ठर ले आई हूँ, चलो स्नान कर आते हैं। ” गप्प करते करते दोनों सास बहू गंगा किनारे पहुंच गई थीं।
घाट पर काफी अँधेरा था। तब …. भी बहुत लोग जुटे हुए थे। कार्तिक स्नान ब्रह्ममुहूर्त में या यूँ कहें अँधेरे में करने का नियम है।  ….. सबके स्नान कर जाने के बाद … जब रवि रश्मियाँ धरा पर फैली तो लक्ष्मी को तैरते देख कर शोर मच गया। …. हजार हजार का बज़ार देख कर।
जलसमाधि … चिता जलना …. लक्ष्मी के साथ यही होता है …. हो गृह लक्ष्मी या हो कागज की।
***
01.
मोक्षदायनी
लक्ष्मी कार्तिक स्नान
पाप तरणी।
02.
लक्ष्मी है पाती
जमाखोरों की सजा
जल समाधि।
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*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ