गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ख्वाहिशें

चेहरे रोशन हैं पर दिल बुझे से रहते हैं
आजकल लोग बनावट से भरे रहते हैं

है बोझ इतना परिंदों पे अपनी चाहत का
उड़ना जानते हैं पर अहसासे कमतरी में रहते हैं

बेजान किनारे पे उतर के जाना है
ज़िंदा वहीँ है जो थपेड़ों से लड़े रहते हैं

मिले सुकून जो उड़ जाये रूह के पंछी
अपने ही घर में किस बेबसी से रहते हैं

सादगी जिनके दिल में अबतलक बाकि है
‘अजनबी’ लोग वही बेहतरी से रहते हैं

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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