मिट्टी के दीये जलातें हैं
चलो एकबार हमसब
फिर देशी बन जाते हैं ।
सरसों के घानी तेल से
मिट्टी के दीये जलातें हैं ।
जिस मिट्टी में हो
खुशबू अपने देश की ।
जिस तेल में झलकती हो
गौरव भारत के हर प्रदेश की ।
घंटीयों के शोर से
आओ तन-मन शुद्ध करें ।
महालक्ष्मी की पुजा से
अपनी वसुधा को समृद्ध करें ।
संस्कृति-संस्कारों का
आओ फिर जयघोष करें ।
रंगोली से घर सजाके
मन में एक नया जोश भरें ।
फुलझरीयों की रौनक हो
पटाखों का शोर हो ।
हर मन खुशी से मुस्काए
हर जन आन्नद विभोर हो ।
आओ एकदिन के लिए हम
फिर देशी बन जाते हैं ।
अपने देश की खुशबूओं से
देश अपना महकाते हैं ।
चलो एकबार हमसब
फिर देशी बन जाते हैं ।
देश में बनी बात्ती से
मिट्टी के दीये जलातें हैं ।
— मुकेश सिंह
सिलापथार (असम)
मो०- 9706838045