कविता

मिट्टी के दीये जलातें हैं

चलो एकबार हमसब
फिर देशी बन जाते हैं ।
सरसों के घानी तेल से
मिट्टी के दीये जलातें हैं ।

जिस मिट्टी में हो
खुशबू अपने देश की ।
जिस तेल में झलकती हो
गौरव भारत के हर प्रदेश की ।

घंटीयों के शोर से
आओ तन-मन शुद्ध करें ।
महालक्ष्मी की पुजा से
अपनी वसुधा को समृद्ध करें ।

संस्कृति-संस्कारों का
आओ फिर जयघोष करें ।
रंगोली से घर सजाके
मन में एक नया जोश भरें ।

फुलझरीयों की रौनक हो
पटाखों का शोर हो ।
हर मन खुशी से मुस्काए
हर जन आन्नद विभोर हो ।

आओ एकदिन के लिए हम
फिर देशी बन जाते हैं ।
अपने देश की खुशबूओं से
देश अपना महकाते हैं ।

चलो एकबार हमसब
फिर देशी बन जाते हैं ।
देश में बनी बात्ती से
मिट्टी के दीये जलातें हैं ।

— मुकेश सिंह
सिलापथार (असम)
मो०- 9706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl