कभी देवता कभी दानव
“अजी सुनते हो पास ही झोपड़पट्टियों में रात बहुत नुकसान हुआ है आग लगने से,दूर दूर से लोग सहायता करने आ रहें है आप कहें तो मैं कुछ खाने पीने का सामान वहाँ भेज दूं।”
“लो अब ये भी कोई पूछने की बात है भला ये तो धर्म का काम है।”
तभी घर का नौकर छोटा सा छोटू बोला “मालकिन सारा काम हो गया मुझे कुछ खाने को दे देते तो…”
“बडी़ जोरदार भूख लगी है कल से कुछ खाया नहीं।”
“रहने रहने दे तेरी भूख का नाटक, तेरी भूख कभी भरती नहीं चल मेरी मदद करवा सामान पैक करवाकर धर्म का काम है वहाँ टी.वी.चैनल वाले और समाज के बडे़ लोग आने वाले है।”
“आज फिर खाने को पता नहीं कब खाने को मिलेगा ,पेट पर गीली पट्टी बांध ले छोटू बेटा” कहकर छोटू सामान पैक करवाने लगा।
— अल्पना हर्ष