ग़ज़ल
क्यों लगे अब खुशी अधुरी सी है।
रिशतों में भी बेरूखी सी है।
लगे पैसा ही सब कुछ जहां में;
हर शख्स की यूं बन्दगी सी है।
काश! सपनो का भारत हो भला;
यूं हर चेहरे पे खुशी सी है।
दीपक बुझा के ओर के घर का;
अब रोशनी खुद की बुझी सी है।
“कामनी” राह सही भले मुशकिल;
उसी से ज़िन्दगी महकी सी है।
कामनी गुप्ता***
जम्मू!