दोहा-छंद :
गहमा गहमी खूब है, कहीं नमक औ नोट।
शोर मचाएँ मतलबी, जिनकी मंशा खोट।।
वक्त तख्त के लालची, देते सबको चोट।
कर देते गुमराह वे , झपट लेत है वोट।।
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी
गहमा गहमी खूब है, कहीं नमक औ नोट।
शोर मचाएँ मतलबी, जिनकी मंशा खोट।।
वक्त तख्त के लालची, देते सबको चोट।
कर देते गुमराह वे , झपट लेत है वोट।।
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी