कहानी

“कचकच और कलरव”

बैंक पुरानी नोट लेने के लिए नई नोट देने को तैयार है, सरकार भी साथ है, दूध वाला उधार देने को राजी है, सब्जी नगद, राशन कुछ तो है घर में, पुराने नोट से पेट्रोल मिल ही रहा है। अब तुम्हें क्या चाहिये, चिल्ल पो मत मचाओ, जो भी बन जाय बना लो, खा लेंगे। बिना पैसे के भी जीवन चलता है, कुछ दिनों की बात है सब सामान्य हो जायेगा…..पैसा…..पैसा…..और पैसा…..हल्ला मत मचाओ। आज रविवार है छुट्टी का आनंद लेने दो। ऐसा समय बार बार नहीं आता, बड़े हिम्मत के बाद, बड़े सौभाग्य के बाद, बहुत ही जहमद के बाद और शायद बहुत ही नेकनीयती के बाद यह निर्णय लिया गया है। जानती हो न, वह पैसा ही था जिसके लिए गाँव घर के साथ साथ, माँ बाप, भाई वंधु सब छूट गए, और हम शहरी हो गए। घर में अलग विलग में भी पैसा ही था, जमींन गिरवी पड़ी थी छुड़ाए कौन और बंटवारा हो गया तब जाकर किसी तरह छुटकारा मिला और ज़मीन वापस मिली। नमक रोटी चल रही है चलती रहेगी। वासी बचे न कौए खांय, कमाओ खाओ मस्त रहो।
काला धन और काला मन न कभी अपना रहा है न आज है। जिसके पास है वो अपनी जाने। अगर कुछ बचा के रखी हो तो बताओ बैंक में जमा करा दूँ……..हाँ मेरे पास तो खजाना भरा पड़ा है एक साड़ी तो खरीद नही पाते बड़े आये जमा करने वाले…..किसी तरह घर चल जाता है वही गनीमत है। हाँ गोलक्क में जरूर कुछ पड़ा होगा, अभी देखती हूँ। धड़ाम की एक आवाज हुई और पैसे कमरे में बिखर गए। कुल छह हजार पांच सौ के बेहिसाबी नोट किसी तरह बहार निकले, यूँ तो ये नोट गाढ़ी कमाई के हैं और टेक्स भी चुकाया गया है पर इन्हें छूपाकर कर इन्हें काला कर दिया गया है। अब मजबूरी में इनको बाहर निकालना पड़ा है जब इनके बिदाई की तारीख नक्की हो गई है। न जाने बड़े बड़े गोलक्को में क्या निकलेगा और उनका क्या होगा। खैर मुझे तो क्या, मेरे खाते में बोनस जमा हो गया और अच्छे दिन की शुरुवात हो गई। जय हो मोदी सरकार की, जय हो आदरणीय मोदी जी के मंशा की……
कल बैंक गया था, भीड़ का दर्शन हुआ, बड़ी मुश्किल से 2000 निकल पाया, नई नोट देखा जिसमे नई आशा का दर्शन हुआ। मन खुश हो गया जब लोगों की अकड़ पसीने से भीगी दिखी और जुबान पर बेमतलब की बातें, जिसकी कोई जरुरत नहीं है। भीड़ में आम आदमी ही खड़ें हैं खास लोग तो अभी रास्ता निकालने में लगे हैं जिनका सारा रास्ता एक ही निर्णय में नो इंट्री का शिकार हो गया है। मुशीबत तो है काला धन रखने पर, जो अभी तक दूसरों का सरदर्द बना हुआ था अब अपने मालिक का चौकोर दर्द बन गया है। न राह मिल रही है न आह निकल रही है, मान गए मोदी साहब मान गए, आप पचास दिन मांग रहे है हम तो पूरा जीवन ही ख़ुशी ख़ुशी आप को सौंप रहे है देश के लिए समर्पित कर रहें हैं। गौरव का तक मिला है अब तक तो जुबान से देश भक्ति हुई है, अपने लिए जीवन यापन हुआ है। दूसरों की घुड़की सहन करनी पड़ी है अब शायद पैसे की अकड़ कम हो और रास्ते तमीजदार हों………कचकच बहुत हुआ अब कलरव की बारी है…….शुद्ध नियति हमारी है……..
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ