लघुकथा

मार्गदर्शन

राहुल बहुत परेशान था. यहाँ भी कोई बात नही बन पाई. कितने सपने लेकर मुंबई आया था. सोंचा था फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम बनाएगा. उसमें प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी. बस एक रोल मिल जाए तो वह स्वयं को साबित कर देगा. साल भर पहले जो जमा पूँजी लेकर आया था वह खत्म हो गई. एक रेस्त्रां में वेटर का काम कर जैसे तैसे गुजर कर रहा था. हाथ हमेशा तंग ही रहते थे.
दूर से उसे बस दिखाई दी वह तेजी से भागा. किंतु उसके पहुँचने से पहले ही वह आगे बढ़ गई. हताश वह अगली बस का इंतज़ार करने लगा. तभी उसकी निगाह नीचे गिरे एक पर्स  पर पड़ी. उसने इधर उधर देखा फिर उसे उठा लिया. पर्स पैसे थे. कुछ दिन आराम से कट सकते थे. उसके मन में लालच आ गया. वह उसे जेब में रखने ही वाला था कि तभी उसे लगा जैसे उसकी स्वर्गीय माँ उसके सामने खड़ी हों. माँ की दी हुई सीख उसके कानों में गूंजने लगी. ‘जो मुश्किल में पथभ्रष्ट हो जाए वह कभी मंज़िल नहीं पाता.’ वह संभल गया. पर्स में एक पहचान पत्र भी था. उसने तय कर लिया कि यह पर्स उसके मालिक को लौटा देगा.

आशीष कुमार द्विवेदी

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है