हिंदी
हिंदी गगरी नहीं,सागर है
अथाह छुपा है ज्ञान
दो अक्षर क्या जानी विदेशी
कर रहा औरों का गुणगान
याद कर माँ संस्कृत को
मिला जो गीता,रामायण को सम्मान
जुबां पर हिंदी हर वक्त रहे है
बस केवल यही मेरा अभिमान
कंठ, ह्रदय सब पावन होते
जो सुमिरै हम शब्द राम
प्रेम,प्यार की बारिश होगी
जब कहोगे मुख से राधे श्याम
भजन,आरती सब सुन के देखो
जैसे घुम लिये हो चारों धाम
हिंदी में सब ग्रंथ हुए सेवक
वचन यही लगे ना कभी विराम
नेता सारे बोले भाषण
देश चला रही हिंदी है
गर्व मुझे मैं सेवक इसका
ये भारती के माथे की बिंदी है