चाँद-अमृत कलश
अरमानों की चादर-सा
तना है आकाश!
सपनों-से सितारे
जगमगाएँ सारी रात!
कुछ टूटे सपने
गिरते हैं अनायास!
कहीं जगाए उम्मीद
कहीं जगाए प्यास!
अमृत कलश-सा चाँद
कौन न चाहे पाना!
बूँद-बूँद नित झरता
भेद न कोई जाना!
ना जाने किस कोष से
फिर भरे है अपने आप!
शीतल हो मन मानव का
पर घटे न बढ़ता ताप!
— शिवानी शर्मा, जयपुर