वो अपनापन कहाँ है
जिसे पुरखों ने सौंपा था, वो अपनापन कहाँ है?
जहाँ सुख बीज रोपा था, वो घर आँगन कहाँ है?
सितारे चाँद सूरज आज भी हरते अँधेरा।
मगर मन का हरे तम वो, दिया रौशन कहाँ है?
वही सागर वही नदियाँ, वही झरनों की धारा।
करे जो कंठ तर सबके, वो जल पावन कहाँ है?
कहाँ पायल की वो रुनझुन, कहाँ गीतों की गुनगुन।
कहाँ वो चूड़ियाँ खोईं, मधुर खनखन कहाँ है?
सकल उपहार देती हैं, सभी ऋतुएँ समय पर।
धरा सूखी है क्यों फिर भी, हरित सावन कहाँ है?
भरे भंडार भारत के, हुए क्यों आज खाली।
बढ़ी क्यों भूख बेकारी, गया वो धन कहाँ है?
अगर कमजोर है शासन, बताएँ कौन दोषी?
जो हल ढूँढे सवालों का, सजग वो जन कहाँ है?
— कल्पना रामानी