अमर शहीद लाला लाजपत राय जी के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलिं
ओ३म्
आज 17 नवम्बर को अमरशहीद लाला लाजपत राय जी की 88 वां बलिदान दिवस वा पुण्यतिथि तिथि है। लाला लाजपत राय जी ने अपने 63 वर्ष के जीवन में देश, धर्म और समाज हित के जो कार्य किये, उसके कारण वह अमर हैं। वह महर्षि दयानन्द के योग्यतम शिष्यों में से एक थे। शहीद भगतसिंह और उनके सभी क्रान्तिकारी मित्र लाला जी के शिष्य थे। लाला जी की अंग्रेजों द्वारा अकारण व अनावश्यक लाठियों से जानलेवा पिटाई ने ही भगत सिंह जी व उनके साथियों को उनके हत्यारों में से एक साण्डर्स से देश के अपमान का बदला लेने के लिए प्रेरित किया था जिसका भारत की आजादी के आन्दोलन में महत्वपूर्ण स्थान है।
देश के सबल प्रहरी लाला लाजपतराय जी का जन्म 18 जनवरी सन् 1865 को पंजाब के मोगा जिले के ढूडूकी गांव में एक वैश्य परिवार में हुआ था। उनके बचपन की घटना है कि उनके पिता इ्रस्लाम से प्रभावित थे। अभी लाला जी गोद में ही थे, कि पिता व माता लाला जी को लेकर मस्जिद में धर्मान्तरण हेतु जा रहे थे। रास्ते में लाला जी इतना रोये कि आपके पिता को अपना इरादा व मकसद बदलना पड़ा और वह घर वापिस आ गये। इसके बाद उनके पिता ने जब भी इस विषय में सोचा, कोई न कोई बाधा आती रही। युवावस्था आने पर आप लाहौर में पढ़ते थे। आर्यसमाज के दो प्रमुख स्तम्भ पं. गुरुदत्त विद्यार्थी और महात्मा हंसराज जी आपके सहपाठी मित्रों में थे। उन दिनों लाहौर में आर्यसमाज के प्रधान लाला साईंदास ऋषि दयानन्द के अनन्य भक्त थे। आपकी दृष्टि इन युवकों पर पड़ी तो आपने इन्हें आर्यसमाज में आमंत्रित कर उन्हें वैचारिक आधार पर प्रभावित ही नहीं किया अपितु इनकी किसी भी प्रकार की समस्या व कठिनाई को हल करने का आश्वासन भी दिया। इसका प्रभाव यह हुआ कि आप तीनों मित्र आर्य समाज के सदस्य बन गये और आपने आर्य समाज को देश देशान्तर में लोकप्रिय बनाने के अनेक कार्य किये। यह भी बता दें कि आपको देश की आजादी के लिए कार्य करने की प्रेरणा महर्षि दयानन्द के उपदेशों व उनके प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश और आर्याभिविनय आदि से मिली थी। अमर शहीद भगत सिंह जी स्वयं आर्यसमाजी परिवार के सदस्य थे। आपके दादा सरदार अर्जुन सिंह कट्टर महर्षि दयानन्द के भक्त थे और प्रतिदिन यज्ञ और सन्ध्या करते थे। सरदार अर्जुन सिंह जी यदि रेलयात्रा करते तो यज्ञकुण्ड, समिधायें और हवन सामग्री उनके साथ रहती थी। उन्होंने अपने पोते भगत सिंह का यज्ञोपववीत संस्कार भी आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान और पुरोहित पं. लोकनाथ तर्कवाचस्पति जी से कराया था। इन लोकनाथ तर्कवाचस्पति ही के पोते राकेश शर्मा हैं जो अमेरिका के चन्द्रयान में चन्द्रमा पर गये थे और अपने यान से चन्द्रमा की परिक्रमा की थी। पूरे विश्व में गाई जाने वाली यज्ञ प्रार्थना ‘यज्ञ रूप प्रभु हमारे भाव उज्जवल कीजिए छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए’ आपके द्वारा ही लिखी गई है जो देश देशान्तर में सभी आर्यपरिवारों में प्रतिदिन गाई जाती है।
लाला लाजपत राय जी का देश की आजादी के आन्दोलन में प्रमुख योगदान था। वह देश की आजादी के आन्दोलन के प्रमुख लोकप्रिय और आदर्श नेता थे। लाला लाजपत राय और शहीद भगतसिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ऐसे दो आर्यसमाजी व ऋषि दयानन्द जी के भक्त हुए हैं जिन्हें देश की आजादी का नेतृत्व व कार्य करने के कारण देश निकाला या जला वतन किया गया था। इनके अतिरिक्त अन्य किसी कांगे्रसी नेता को जलावतन नहीं किया गया। यह आर्यसमाज की बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसका कारण आर्यसमाज की शिक्षायें और उनका उन पर आचरण करना था। लाला जी पंजाब केसरी के नाम से देश व विश्व में विख्यात हुए। देश के तीन बड़े नेता लाला-बाल-पाल में से आप एक थे। आप हिन्दी, अंग्रेजी व उर्दू के कुशल लेखक, प्रभावशाली वक्ता, सदाचारी नेता होने के साथ देश के जन जन में लोकप्रिय थे। आपने लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में आन्दोलन करते हुए देशभक्तों के एक विशाल जलूस का नेतृत्व किया था। इस कारण लाला जी के भय से आक्रान्त अंग्रेज पुलिस अधिकारी ने उन पर भीषण लाठी चार्ज किया। इस भीषण लाठी चार्ज का ही परिणाम था कि कुछ दिनों बाद लाला जी की मृत्यु हो गई। लाला जी ने कहा था अंग्रेजों द्वारा मुझ पर बरसाईं र्गइं लाठियां अंग्रेजों भारत में राज्य के कफन की कील साबित होंगी और हुआ भी यही। इस घटना के लगभग 19 वर्ष बाद अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा। आजादी का श्रेय कोई भी ले या किसी को भी दिया जाये परन्तु यह सत्य है कि देश की आजादी में भारत माता के कोटिशः सपूतों का योगदान था जिसमें लाला लाजपतराय व भगतसिंह जी सहित सभी क्रान्तिकारियों की अग्रणीय भूमिका थी। हम लाला जी की निर्भीकता व देशभक्ति को नमन करते हैं।
भारत का पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी इंश्योरेंस कम्पनी के संस्थापक भी लाला लाजपत राय जी ही हैं। आपने अपनी माता जी की स्मृति में एक अस्पताल भी स्थापित किया था जो विभाजन होने के कारण पाकिस्तान में चला गया। लाला जी में क्रान्ति के विचार उत्पन्न करने का श्रेय लाला साईंदास, ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश और आर्याभिविनय आदि ग्रन्थों को मुख्य है। वह आर्यसमाज को अपनी माता और ऋषि दयानन्द जी को अपना पिता मानते थे। वह देश की आजादी के दीवाने थे। कल्याण व सत्य मार्ग के पथिक थे। वह ईश्वर को सच्चिदानन्द, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, न्यायकारी और जन्म-मृत्यु प्रदाता सहित कर्म-फलों का दाता मानते थे। सन्ध्या व यज्ञ के वह प्रेमी थे। आपने अपने जीवन में प्रभूत सहित्य सृजित किया जिसका हिन्दी अनुवाद आर्य विद्वान डा. भवानीलाल भारतीय ने किया और उनके सभी ग्रन्थों का प्रकाशन आर्य साहित्य के प्रमुख प्रकाशक यशस्वी श्री अजय आर्य जी के साहित्य प्रतिष्ठान ‘विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली’ ने ग्रन्थावली रूप में किया।
लाला जी अपने जीवन में एक वा अधिक बार देहरादून में भी आये थे। एक बार प्रमुख आर्य विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने एक आर्य दलित नेता का नाम हमें बताया था जिनके देहरादून के घर में लाला जी गये थे और भोजन आदि से सत्कार प्राप्त किया था। यह बन्धु हमारे मोहल्ले ‘चुक्खूवाला’ में ही रहते थे। हम उनके घर पर भी गये हैं। उनके पुत्र इनकम टैक्स में उच्च पदाधिकारी थे। उनके यहां लाला जी का परिवार के सदस्यों के साथ चित्र भी लगा था। इस समय हम उनका नाम भूल रहे हैं। शायद चैधरी बिहारी लाल रहा हो।
17 नवम्बर सन् 1928 को लाला जी बलिदान हुआ था। लेख को अधिक विस्तार न देते हुए हम इसे विराम देते हैं और लाला जी को उनकी देश की सेवाओं के लिए श्रद्धांजलि देते हैं। इति ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य