लघुकथा

दिमाग डाल डाल-सोच पात पात -जोड़ का तोड़

“पंखुरी ! तुम्हारे घर से ऐसी आवाजें किस चीज से आ रही है ?”
पंखुरी अपने फ्लैट से सटे फ्लैट में ,अपनी सहेली के संग खेल रही थी तो सहेली की माँ उससे सवाल की।
“कैसी आवाजें आपको सुनाई दे रही है चाची ?”
“धम – धम की आवाजें ! जैसे कुछ कुटाई हो रही हो। चुड़ा-चावल बनाने के लिए धान कूटते हैं वैसा ?”
“हाँ चाची ! माँ और मेरी चाची मिल कर कुटाई कर रही हैं। ”
“वही तो पूछ रही हूँ किस चीज की कुटाई हो रही है ?”
“लुगदी है चाची।”
“लुगदी ! लुगदी कूट कर क्या करेंगी तुम्हारी माँ व चाची ?”
“लुगदी कूट कर बड़ा दउरा बनाया जायेगा चाची।”
“इतनी मेहनत ! और इस जमाने में ? अपार्टमेंट में रहने वाले के लिए दउरा का प्रयोजन !” पड़ोसन होने का धर्म उनके दिलो दिमाग में खलबली मचाये हुए था …. दोनों घरों में एक ही जासूस सहायिका थी। .. उससे उन्हें खबर मिली कि 500-1000 के नोट को खपाया जा रहा है … मिक्सी में पिस कर कब तक बहाते रहते !”

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ