मेरी कहानी 182
अपने अपने कमरों में सामान रख कर हम बाहर को जाने लगे। कुछ गज़ की दूरी पर ही एक कैंटीन जैसा होटल था। इस में ही हर सुबह हम ने कौंटिनैंटल ब्रेकफास्ट लेना था। यूँ ही देखने के लिए हम इस के अंदर चले गए। जसवंत ने एक शख्स को पुछा कि सुबह को कौंटिनैंटल ब्रेकफास्ट में किया देना था, तो उस ने बताया कि फ्री में सिर्फ टोस्ट, मार्मलेड, स्ट्रॉबरी जाम, या कॉर्नफ्लेक्स थे और साथ में चाय और काफी थी लेकिन अगर हम और कुछ लेना हो जैसे एग्ग फ्राई या बेकन सौसेज तो उस के लिए हम को पैसे देने होंगे। इसी कैंटीन के सामने एक छोटा सा स्विमिंग पूल था, जिस के इर्द गिर्द कुर्सीआं मेज़ रखे हुए थे और एक तरफ सूर्य स्नान करने के लिए लंबी लंबी हैड रैस्ट बैंच जैसी कुर्सीआं थीं, जिन पर लेट भी सकते थे और फोल्ड करके कुर्सी भी बना सकते थे। इन के ऊपर तेज़ धुप से बचने के लिए बड़ी बड़ी छतरीयां भी खुली हुई थीं। इसी कैंटीन से बीअर भी सर्व होती थी और उस वक्त कुछ गोरे गोरीआं बैठे बीअर का आनंद ले रहे थे। कुछ दूर एक तरफ एक दरजी बैठा था, जिस के आगे कपड़े सीनें वाली मशीन रखी हुई थी और बहुत से कपडे कुछ हैंगरों पर टँगे हुए थे। वोह कपड़ों की रिपेयर करता था और साथ में ही अगर कोई अपनी मर्ज़ी की ड्रैस बनाना चाहता हो तो वोह उस का नाप ले कर वहां ही बना देता था। एक तरफ छोटा सा कमरा था, जिस में मासाज बगैरा होती थी और बाहर एक बोर्ड लगा हुआ था, जिस पर कीमतें लिखी हुई थीं। कुछ आगे गए तो एक कुआं भी था जो लोहे की सलाखों के जाल से बन्द किया हुआ था, ज़ाहर था यह किसी वक्त इस्तेमाल करते होंगे। कुछ आगे वोह ही कमरा था, जिस में हम ने अपने पासपोर्ट दिखाए थे। सरसरी नज़र से हम ने गर्दन घुमा के देखा वोह लड़कियां और दो लड़के आपस में बातें कर रहे थे।
तरसेम सिंह धीरे धीरे छड़ी के साथ चलता आ रहा था। कुछ साल हुए, उस को माइनर स्ट्रोक हो गया था लेकिन सिर्फ एक टांग में ही तकलीफ थी, वैसे वोह ठीक ठाक था और इस वक्त भी वोह छड़ी के सहारे ही चल सकता है लेकिन वोह गाड़ी चलाता है। तरसेम कभी स्कूल नहीं गया था लेकिन वोह काफी हुशिआर है और अब भी दोनों मिआं बीवी हॉलिडे जाते रहते हैं। होटल के बाहर हम सड़क पर आ गए थे और एक तरफ चल पड़े। कोई ओपरापन नहीं लग रहा था। अपने लोगों की दुकाने और जगह जगह खाने के लिए होटल, देख कर पंजाब ही लग रहा था। बिदेशी लोग भी छोटे कपड़ों में आम ही घूम रहे थे। सोच रहे थे कि रात का खाना कहाँ खाया जाए। दोनों तरफ देखते जा रहे थे। आगे एक चाइनीज़ का होटल था जो खुल्ले में था, छत सिर्फ एक तरपाल ही थी, काफी कुर्सीआं मेज़ सजे हुए थे। फैसला हो गया कि रात का खाना यहीं खाएंगे। मैन्यू और कीमतें बाहर बोर्ड पर लगी हुई थीं। चाइनीज़ का मैं इतना शौक़ीन नहीं हूँ लेकिन जब सभी चाइनीज़ खाना चाहते हों तो मेरा रुकावट बनना वाज़व नहीं था। चलते चलते कुछ कुछ अँधेरा शुरू हो गया था, सो आज के लिए इतना चलना ही ठीक समझ क्योंकि हमें तरसेम का भी ख्याल रखना था ताकि उस को तकलीफ ना हो। हम वापस कमरे में आ गए। इंग्लैंड से चलते वक्त हम एक इलैक्ट्रिक कैटल, शूगर और कुछ टी बैग भी ले आये थे ताकि कभी रात को बैठे बैठे चाय को जी चाहे तो हमें बाहर न जाना पड़े। यहां दूध की हम को कोई कमी नहीं थी क्योंकि कैंटीन पास में ही थी।
हम वापस कमरे में आ गए और तरसेम के कमरे में ही बैठ गए और सुबह का प्लैन बनाने लगे। गोवा की गाइड बुक हमारे पास थी और इस में देखने लगे कि गोआ में किया किया देखने वाला था। हम ने स्पाइस गार्डन देखने का मन बना लिया। पता नहीं किया किया बातें करते रहे और फिर कोई नौ बजे हम खाने के लिए बाहर चल पड़े। इस वक्त कैंटीन में रौनक थी। गोरे स्विमिंग पूल के नज़दीक बैठे खा पी रहे थे और बीअर का मज़ा ले रहे थे। गोरे लोगों का मज़े करने का ढंग यही होता है, वोह ऊंची ऊंची किसी बात पर हंस रहे थे। हम ने भी फैसला कर लिया कि कभी कभी यहीं बैठ कर गप्पें हांका करेगे। उन्हें हैलो हैलो बोल कर होटल के बाहर सड़क पर आ गए। सड़क पर अब रंगबिरंगी रौशनियां ही रौशनियां थीं और लोग खा पी रहे थे। कुछ दूर चल कर हम चाइनीज़ होटल में आ गए। हमारे आने से पहले ही गोरे लोगों से होटल भरा पड़ा था लेकिन हमें कोई दिकत नहीं हुई। एक चीनी हमें एक टेबल पर ले गया। कुछ ही मिनटों में वेटर ऑर्डर लेने आ गया। हम ने किंगफिशर बीअर का आर्डर दिया और लेडीज़ ने अपने अपने पसंद के सॉफ्ट ड्रिंक ऑर्डर कर दिए। गोआ में उस वक्त किंगफिशर बीअर ही ज़्यादा पी जाती थी, जिस की कीमत उस समय 45 रूपए बोतल थी जो हमारे हिसाब से बहुत सस्ती थी। हम पीने और बातें करने लगे, बहुत शांत वातावरण था, तकरीबन एक घंटा बातें करने के बाद खाना सर्व होने लगा। चाइनीज़ नूडल जिन को मैं इतना पसंद नहीं करता था, अब उस का भरा बाउल मेरे सामने था। जब मैंने नूडल खाने शुरू किये तो इतना मज़ा आया कि मैंने एक बाऊल और लाने को कह दिया। बस यहीं से नूडल खाने की मुझे आदत पडी और अब तो कभी कभी बेटा घर भी बना लेता है। यह नूडल लेडिज़ के लिए वेजिटेरिअन थे और हमारे लिए नॉन वेजिटेरिअन। नूडल के साथ काफी कुछ था और आखिर में स्वीट डिश आई, यह भी बहुत अछि लगी। इस के बाद हम अपने होटल में आ गये। आते ही अपने अपने कमरों में सोने की तैयारी करने लगे।
सुबह उठे, नहा धो कर अपने अपने बैग उठाये और कैंटीन की तरफ चल पड़े। बहुत गोरे गोरीआं पहले ही कुछ खा रहे थे और कुछ लाइन में खड़े अपना ब्रेकफास्ट लेने के लिए इंतज़ार कर रहे थे, हम भी खड़े हो गए। जब हम चाय के काउंटर पर पहुंचे तो आगे एक लड़का टोस्ट बना रहा था और हर कोई टोस्ट अपनी प्लेट में रख कर ऊपर अपना मन पसंद याम मार्मलेड और माखन लगा के आगे चाय या कॉफी का कप ले लेता था। अपनी अपनी प्लेट ले के हम टेबल पर जा बैठे। खा पी कर हम बाहर सड़क पर आ गए और टैक्सी का इंतज़ार करने लगे। मोटर बाइक टैक्सी, वाले भी जगह जगह घूम रहे थे लेकिन हम ने गाड़ी में जाना ही पसंद किया। एक टैक्सी आ गई और हम ने उसे स्पाइस गार्डन चलने को बोला। मैं टैक्सी वाले की पास की सीट पर बैठा था और उस से बातें करने लगा। अपने बारे में वोह बताने लगा कि वोह एक गाँव का रहने वाला था और वहां उस की खेती बाड़ी का काम है लेकिन इस सीज़न में वोह यहां आ कर टैक्सी चलाता है और उस ने बताया कि वोह रोमन कैथोलिक है। बाजार से निकल कर टैक्सी बाहर आ गई थी और अब हरे भरे खेत दीख रहे थे। मैं सोचा करता था कि गोआ समुन्दर के किनारे होने की वजह से खेती बाड़ी नहीं होती होगी क्योंकि समुन्दर का पानी नमक वाला होता है लेकिन यहां तो हर तरफ हरियाली ही हरियाली थी। दूर बृक्षों की और इशारा करके टैक्सी ड्राइवर बता रहा था कि वोह काजू के बृक्ष थे। जैसे जैसे हम बाहर की सड़कों पर जा रहे थे, हरियाली ही हरियाली देख कर मन खुश हो रहा था। फिर एक जगह घने बृक्ष आ गए और आगे काफी गाड़ीआं खड़ी थीं। टैक्सी वाले ने भी गाड़ी खड़ी की और हम स्पाइस गार्डन की ओर चल पड़े। बाहर एक बोर्ड लगा हुआ था जिस पर स्पाइस गार्डन के इलावा कुछ और भी लिखा हुआ था। जब हम गार्डन में दाखल हुए तो दोनों तरफ बृक्षों पर लगे लाल रंग के फूल देख कर बहुत अच्छा लगा। आगे एक लकड़ी का छोटा सा पुल्ल बना हुआ था। जब इस पुल्ल के पार हुए तो दो लड़कियों ने हाथ जोड़ कर हमारा स्वागत किया। एक आदमी टोकरी में फूलों के हार लिए खड़ा था। लड़कियां सब के माथे पर टीका लगा कर गले में हार पहनाने लगीं। अब हम इस गार्डन में दाखल हो गए थे। एक लड़की हम को एक छोटे से लकड़ी के बने हुए ईटिंग प्लेस की ओर ले आई। बैंचों पर हम बैठ गए और सब को नारियल पकड़ा दिए, जिन में स्ट्रौ डाला हुआ था। नारियल पानी पी कर मज़ा आ गया और अब हम को बताया कि इस गार्डन की एंट्री फीस 300 रूपए हर एक की थी, जिस में खाना पीना भी शामल था।
टिकट ले कर हम उस लड़की के पीछे पीछे चल पड़े जो अब हमारी गाइड थी। यह गार्डन एक साफ़ सुथरा जंगल था। चारों ओर बृक्ष ही बृक्ष थे। एक जगह लड़की खड़ी हो गई और हम सब को शाखों पर लगी हरी इलायची दिखाने लगी। सारी उम्र इलायची इस्तेमाल करते रहे और आज देखा कि कहाँ लगती है। अब आगे चल पड़े। कुछ दूर आ कर लड़की ने एक बृक्ष की और इशारा करके दिखाया यहां काली मिर्चें लगी हुई थीं। उस ने यह भी बताया इन काली मिर्चों में लाल और हरे रंग की काली मिर्च भी होती है जो हमें स्पाइस शॉप में मिल जायेगी। कुछ आगे गए तो लड़की जो इंग्लिश ही बोलती थी, ने एक बृक्ष से कुछ पत्ते तोड़े और हम को मुंह में रखने को कहा। जब हम दांतों से इस को काट रहे थे तो हमें कई मसालों का स्वाद आ रहा था। उस ने छै मसालों के नाम लिए जिन का यह स्वाद था। यह भी एक अध्भुत बात ही लगी। कुछ आगे गए तो एक जगह जायफल का छोटा सा ढेर लगा हुआ था और एक औरत इस ढेर को हाथों से चारों ओर फैला रही थी जो शायद सुखाने के लिए होगा। एक जगह एक हाथी खड़ा था। लड़की ने हमें बताया कि हम हाथी की सवारी करना चाहें तो कर सकते हैं लेकिन हम में कोई भी तैयार नहीं हुआ। एक ओर कुछ पाइप जैसा सामान पड़ा था, लड़की ने बताया कि यहां काजू से फेनी बनती है। दूर दूर घूम कर जब हम वापस आने लगे तो जैसे ही हम उस ईटिंग प्लेस और स्पाइस शॉप के नज़दीक आये तो लड़की बोली, ” प्लीज़ ज़रा ठहरिये, हमारी एक रवायत है “, एक एक करके लड़की हमारी कमीज का कालर पकड़ कर पीठ पीछे एक गड़वी में से थोह्ड़ा सा पानी डाल देती और हम तरभक उठते और हंसने लगते।
अब हम उस खाने वाली जगह पर आ गए थे। बिलकुल जंगल की तरह ही यह सारा एरिया लकड़ी का बना हुआ था और एक दीवार पर खाने रखे हुए थे और साथ में ही घास फूस से लिपटी हुई वाइन जैसी बोतलें थीं, जिन में इस स्पाइस गार्डन में ही बनी हुई काजू से बनी शराब थी, जिस को फेनी कहते हैं। औरतें तो खाने लगीं लेकिन हम तीनों फेनी की ओर चल पड़े। ग्लास भी साथ में रखे हुए थे। पता नहीं यह कैसी हो, सोच कर हम ने थोह्ड़ी थोह्ड़ी ही ग्लासों में डाली और ग्लास ले कर अपनी अपनी सीटों पर आ कर पीने लगे। ” मामा !यह तो बहुत मज़ेदार है ” जसवंत बोला और हम सब उठ कर दुबारा लेने चल पड़े। अब की बार हम ने ग्लास आधे आधे भर लिए और मज़े से फेनी का लुत्फ लेने लगे। सभी के चेहरों पर मुस्कराहट थी और एक ड्रिंक और लेने के लिए इशारा हो रहा था। हंसते हंसते हम ने एक ड्रिंक और लिया और खाना थालियों में रखने लगे। खाने में चिकन करी भी थी और कई प्रकार की सब्ज़ियां और दाल थी। पेट भर के खाया और अब उठ कर हम स्पाइस शॉप की तरफ आ गए। काफी मसाले हम ने लिए क्योंकि यह तो वैसे भी इंग्लैंड से सस्ते थे। मसालों के बैग ले कर हम गार्डन से बाहर आ गए और टैक्सी में बैठ कर अपने होटल की तरफ चल पड़े। टैक्सी वाले ने फ्रांसिस एगज़ेविअर चर्च दिखाने को बोला तो हम ने उस को कहा कि फिर कभी सही। उस ने अपना मोबाइल नंबर दे दिया। कुछ देर बाद ही हम हमारे कमरे में आ कर मसाले वाली चाय बनाने लगे। चलता. . . . . . . . . .