गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : शायर टूट गया

 

हर पल शीशे से भिड़ने का तेवर टूट गया.
चोट हथौड़े की खाई तो पत्थर टूट गया,

कितनी बार वो टूटा घर को जोड़े रखने में,
फिर भी इक दिन ऐसा आया वो घर टूट गया.

पेड़ से पत्ते को लोगों ने गिरते तो देखा,
फिर किसने देखा वो कितना गिरकर टूट गया.

बाहर से दिखता है सबको हँसता-मुस्काता,
पर किसको मालूम वो कितना भीतर टूट गया.

कैसे-कैसे लोग मिले जीवन की राहों में,
बिछड़ा तो टूटा दिल, कुछ से मिलकर टूट गया.

वो ग़ज़लों में गाता टूटे दिल के अफ़साने,
सबको अपने लगते, कितना शायर टूट गया.

— डॉ.कमलेश द्विवेदी, कानपुर
मो. 09415474674