यादों का कोहरा
यादों के कोहरे ने ढ़क लिया बेवफाई का आसमान,
मुझसे ही दगा कर रहा है देखो ये मेरा दिल बेईमान।
आज भी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं तेरे नाम से मेरी,
यकीन करोगी नहीं पर तुझमें अटकी हुई है ये जान।
बेवफाई तुमने की इल्जाम मुझे दिया मैं खामोश था,
क्यों रहा खामोश मैं, जानकर तुम बनी रही अनजान।
कयामत की रात थी वो जब पलकें भी नहीं झपकी,
आँसू गिरते रहे तकिये पर, दिल बन गया था श्मशान।
पत्थर कहकर चली गयी तुम जिंदगी से मेरी उस दिन,
पर भूल गयी कभी मिटते नहीं पत्थर पर पड़े निशान।
सच कहूं तेरे दिए जख्मों को मैंने कभी भरने नहीं दिया,
कहीं फिर से मोहब्बत ना कर बैठे मेरा दिल ऐ नादान।
छोड़कर मुझे जलाकर निशानी खुश नहीं रही होगी तुम,
कुछ पल के लिए ही सही बना था तेरे दिल का मेहमान।
सुनो मेरे दिल के दरवाजे आज भी खुले हैं तुम्हारे लिए,
पर आओ तो ऐसे आना पूरी हो ये मोहब्बत की दास्तान।
देखना एक दिन सुलक्षणा लिखेगी गीत अपने मिलन के,
कलम उसकी दिलवाएगी हमें भी हीर राँझे जैसी पहचान।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत