मेरी कहानी 183
स्पाइस गार्डन मुझे तो इतना अच्छा लगा था कि इस की याद अभी तक आती है। पूरा गार्डन तो हमें दिखाया ही नहीं गया था। घर आ कर गाइड बुक देखि थी, तो जाना अभी और भी बहुत कुछ देखने को था। कमरे में आ के हम ने स्पाइस टी बनाई थी और हमारे कमरे में ही हम बैठे बातें करते रहे थे। हमारी बैलकनी में दो कुर्सियां ही रखी हुई थीं, दो हम ने जसवंत के कमरे में से उठा लाइ थी क्योंकि हम चारों एक जगह ही बैठा करते थे और ताश तो रोज़ाना ही खेलते थे। हर रात का खाना हम नए नए होटलों में खाया करते थे। इंडिया में होने से हर तरफ हमें अपनापन ही दिखाई देता था। इंडिया के हर पर्रान्त की डिशज़ हमें उपलभ्द थी और हम भी इन खानों का भरपूर मज़ा लेना चाहते थे। आज हम ने डोसा मसाला खाया था और चटनियों का तो बहुत ही मज़ा आया था। डोसा तो इंग्लैंड में भी कभी कभी खा लिया करते थे लेकिन गोआ में तो डोसे के साथ चटनियाँ ही बहुत किसम की और मज़ेदार थीं। खाने पीने और बीच पर धुप का मज़ा लेने के सिवाए हैलिडे होती भी किया है ?, दूसरे दिन हम कैंटीन में ब्रेकफास्ट ले के कैलंगुट बीच की तरफ चल दिए। होटल से बाहर आ कर सड़क पार हम ने की, दोनों तरफ दुकाने थीं, कुछ कपड़ों जूतों की और बीच बीच बीअर बार थी। कोई पचास गज़ चलने के बाद ही हम रेत पर चलने लगे। बीच अभी काफी दूर था लेकिन आगे रेत ही रेत दिखाई देती थी। हमारी चपलें रेत में धँस रही थीं और चपलों से चलना मुश्किल लग रहा था। चपलें उतार कर हम ने हाथों से पकड़ लीं लेकिन तेज़ हम नहीं चल सकते थे। तरसेम तो यूँ भी छड़ी के सहारे चल रहा था। जब बीच पर पहुंचे तो दूर दूर तक देखा, समुन्दर की लहरें किनारे की तरफ बढ़ रही थीं जो बहुत मज़ेदार लग रहा था। बीच तो हम ने इंग्लैंड और पुर्तगाल में भी देखा हुआ था लेकिन गोआ के बीच तो बहुत अच्छे हैं। दूर दूर तक गोरे गोरीआं डैक चेअर खोल कर लेटे हुए थे, कई मालश करवा रहे थे। बीच पर बहुत लड़के हाथों में तेल के बॉक्स लिए घूम रहे थे।
बीच से कुछ दूर शैक बने हुए थे, जिन में ठंडी बीअर, मछली और मीट उपलभ्द था। ऐसे शैक बहुत थे। यह शैक बांस की लकड़ियों से बने हुए थे जिन के ऊपर घास फूस से बनी हुई छतें थीं और इस के नीचे बैठने के लिए प्लास्टिक के कुर्सियां मेज़ रखे हुए थे लेकिन फ्लोर सिर्फ रेत ही थी। मैं और जसवंत एक शैक में गए और छै डैक चेअर बीच पर लाने को बोल दिया। ऑर्डर दे कर हम वापस बीच पर आ गए। कुछ ही देर बाद तीन लड़के डैक चेअऱज़ रख कर छतरियां रेत में खड़ी कर गए। हम ने उन को तीन किंगफिशर और तीन कोक लाने को बोल दिया। निकरें पहन कर और कमीजें उतार कर हम चेअर्ज़ पर लेट कर धुप का मज़ा लेने लगे। धूप का मज़ा आज पहली दफा आया क्योंकि इंग्लैंड में इतनी धूप कभी पड़ती ही नहीं। इस में एक बात और भी है कि अगर कभी इंग्लेंड में गर्मिओं के दिनों में दो चार दिन के लिए धूप पढ़ भी जाए तो यह धूप सूई की तरह चुभने लगती है और खतरनाक समझी जाती है। रेडिओ टैली पर धूप से बचाव करने को बोलते रहते हैं कि इस से सकिन्न कैंसर हो सकता है और शरीर पर सन लोशन मलने की नसीहत देते हैं और यहाँ गोवा में तो बहुत मज़ा आ रहा था। तापमान इंग्लेंड से ज़िआदा होने पर भी यहाँ पसीना शरीर को भा रहा था। दो लड़के हमारे लिए ड्रिंक ले आये और सामने एक प्लास्टिक के टेबल पर रख दिए और खाने को पूछने लगे। मीट तो हम इंग्लेंड में हर हफ्ते खाते हैं, मछली भी बहुत मिलती है लेकिन गोवा की मछली तो बिलकुल ताज़ा होती है क्योंकि गोवा तो मछली का घर है। जसवंत ने उस को मछली दिखाने को बोला ताकि पता चले कि कैसी है। कुछ देर बाद एक लड़का प्लेट में मछली रख कर ले आया जिस पर मसाला लगा हुआ था। मछली होगी कोई दो किलो की। मछली हमें पसंद आई और भूनने के लिए उस को कह दिया।
कभी कभी उठ कर हम बीच पर पानी में मज़ा लेने लगते जो ठंडा था। समुन्दर की लहरें बहुत अछि लगतीं। कुलवंत सुरजीत कौर गियानो बहन भी अपनी अपनी शलवारों को ऊंचा कर के पानी की लहरों का आनंद लेने लगीं। शैक से लड़का मछली ले आया था और हम खाने लगे। कुलवंत भी मछली की शौक़ीन है और खाते खाते,मसालों का ज़ायज़ा लेने लगी कि इस में कौन कौन से मसाले थे ताकि घर आ कर वोह भी इसी तरह बनाने की कोशिश करे। मछली खा कर हम तीनों पुरुष ताश खेलने लगे। हमारे इर्द गिर्द मालश करने वाले लड़के घूम रहे थे और ज़िद कर रहे थे कि हम भी मालश करवा लें। जब खा पी चुके तो ताश छोड़ कर हम ने मालश के लिए भी लड़कों को कह दिया। तीन छोटे छोटे लड़के हमारी मालश करने लगे। तेल में से नारियल की सुगंध आ रही थी और लड़के से पूछने पर पता चला कि यह नारियल का तेल ही था। मालश करते हुए उस लड़के से मैंने पुछा,” एक दिन में कितना कमा लेते हो ?”, लड़का बोला कि कभी चार पांच सौ और कभी ज़्यादा भी हो जाता है लेकिन यह सीज़न पर ही निर्भर करता है, किसी दिन कोई ग्राहक भी नहीं मिलता। उस ने यह भी बताया कि उस के तीन छोटे भाई बहन भी हैं और पिता बीमार रहता है। जब लड़के मालश कर चुक्के तो पचास पचास रूपए हम ने उन को दे दिए लेकिन मन में मैं सोचने लगा कि हालात इंसान को कैसे कैसे काम करने पर मजबूर कर देते हैं। किया मेरे बच्चे यह काम कर सकते हैं ? नहीं सवाल ही पैदा नहीं होता लेकिन यह ज़िन्दगी है, यह कब रुख बदल ले, कोई समझ ही नहीं सकता।
शाम होने को थी, उठ कर हम होटल की तरफ चल पड़े। होटल में आ कर कुछ देर आराम किया और फिर जब कुछ अँधेरा हुआ तो हमें मयूजिक की आवाज़ सुनाई दी। कमरों को बन्द कर के जब बाहर आये तो स्विमिंग पूल पे मिउज़िशियन आये हुए थे। स्टैंड पर कीबोर्ड रखा हुआ था और एक ओर ड्रम थे, एक लड़का और एक लड़की सिंगर थे। पता चला कि हफ्ते में दो दफा यहां संगीत का प्रोग्राम होता है। आज यहीं खाने पीने का प्रोग्राम हम ने बना लिया। पहले हम कैंटीन में गए और उन का मैन्यू पुछा। एक शैफ था जो हमें बताने लगा कि वोह दिली के एक होटल से काम छोड़ कर यहां आया था और अच्छा खाना खिलाने का हम को भरोसा दिलाया। आज काफी लोग आ रहे थे, इस लिए हम ने जल्दी से एक टेबल और ले लिया और बैठ गए। कुछ ही देर बाद एक गुजराती मिआं बीवी भी आ गए जो शायद पास के होटल से होंगे। यह हमारी ही उम्र के थे। उन को देख कर हम सब को बहुत ख़ुशी हुई और उन को भी हमारे टेबल पर आ जाने को बोला। अब तो हमारे टेबल पर रौनक हो गई। मयूजिक शुरू हो गया। एक लड़की जो शलवार कमीज पहने हुए थी, इस कैंटीन में काम करती थी। लड़की बहुत अछि और भोली भाली थी और एक गरीब परिवार से थी, जिस का हमें कुछ दिन बाद मालूम हुआ था और कुलवंत ने हॉलिडे के उपरंत बहुत से अपने कपडे उस लड़की को दे दिए थे और वोह बहुत खुश हुई थी क्योंकि कपडे तकरीबन नए ही थे। यह लड़की हमारे टेबल पर आई और पूछने लगी कि हम ने किया पीना था। हम ने किंग फिशर का आर्डर दे दिया और लेडीज़ के लिए जुइस कह दिया। वोह गुजराती मिआं बीवी दोनों ने भी अपने लिए किंगफिशर बोल दिया। गुजराती औरतें, पंजाबी औरतों से कुछ एडवांस हैं और बहुत औरतें ड्रिंक ले लेती हैं।
ड्रिंक हम पीने लगे, मयूजिक पे गाना शुरू हो गया लेकिन गाने के बोल हमें समझ में नहीं आ रहे थे। हम ने उस लड़की से पुछा की यह कौन सी भाषा थी, तो उस ने बताया कि यह कुनकनी भाषा थी, जो गोवा की जुबां है। यह भी हमें एक नई बात पता चली, अभी तक हम को कुनकुनी भाषा का कोई गियान ही नहीं था और अभी तक तो सभी हिंदी ही बोल रहे थे। जो शैफ दिली से आया हुआ था, उस से हम ने अपना कमाल दिखाने को कहा और उस को यह भी हम ने कह दिया कि हम भी खाना बनाने में एक्सपर्ट थे। कोई आधे घंटे बाद वोह खाना हमारे टेबल पर सजाने लगा। खाना वाकई बहुत लज्जतदार था, सभी उस की सिफत करने लगे। उधर अब इंग्लिश गाना शुरू हो गया था क्योंकि ज़्यादा सरोते तो बिदेशी ही थे। गोरे गोरीआं ऊंची ऊंची बोल और कभी कभी हंस पड़ते थे। लगता था, सभी खाने और पीने में ही मसरूफ थे। उस लड़की को जो लोगों को सर्व कर रही थी, उस को मैंने कहा कि वोह सिंगरों को कहे कि वोह कोई हिंदी गाना भी गायें। सिंगरों ने हिंदी का एक फ़िल्मी गाना शुरू कर दिया। गाना इस तरह वोह गा रहे थे, जैसे रिकॉर्ड बज रहा हो, सुन कर बहुत अच्छा लगा। इस के बाद एक और गाना शुरू हो गया और वोह लड़की साथ में डांस करने लगी। कुछ देर बाद गोरे गोरीआं भी उठ कर डांस करने लगे। मैं और जसवंत भी उठ कर भंगड़ा डांस करने लगे, यूँ भी बीअर का कुछ कुछ सरूर था और हम मज़े कर रहे थे।
रात काफी हो चुक्की थी, अब मैं भी कीबोर्ड वाले के पास गया और उस को कहा कि क्या मैं भी कीबोर्ड बजा सकता था, तो वोह ख़ुशी से एक तरफ हो गया और मैं नागिन का जादूगर सईआं गाने लगा। इस की बोर्ड की आवाज़ भी बहुत अछि थी और मुझे खुद भी इसे बजाने में बहुत मज़ा आया। बाद में सभी ने तालियां बजाईं और मुझे भी मज़ा आ गया। अब मैं फिर अपनी सीट पर आ गया और सभी जोक सुनाने में मसरूफ हो गए। वोह गुजराती मिआं बीवी ने बहुत जोक्स सुनाईं। इधर जसवंत और मैं ही थे। जसवंत ने एक ही जोक सुनाई लेकिन मेरा अब मूड हो गया था। मेरी एक जोक तो गुजराती भाई ने अपनी डायरी में ही नोट कर ली। जोक्स तो मैंने काफी सुनाईं लेकिन जो मेरी जोक गुजराती भाई ने डायरी में नोट की, वोह कोई इतनी बड़ीआ तो नहीं थी लेकिन जो इस को सुनाने का मेरा अंदाज़ था, उस से सभ ने मज़ा लिया। जोक तो जोक ही होती है लेकिन जोक सुनाने का ढंग राजू श्रीवास्तव जैसा हो तो तभी इस का लुत्फ आता है। जो मेरी जोक थी, वोह कुछ इस प्रकार थी,” दो दोस्त थे, एक दोस्त किसी पागल खाने में काम करता था। दूसरे दोस्त ने पागलखाना देखने की इच्छा जाहर की तो वोह बोला कि किसी दिन आ के वोह पागलखाना देख ले, वोह उस को अछि तरह दिखा देगा। एक दिन वोह पागलखाना देखने चला गया और उस का दोस्त सारा पागलखाना दिखाने चल पड़ा। कुछ दूर गए तो एक छोटे से कमरे में एक आदमी खड़ा था, कमरे के आगे लोहे की सलाखें थीं। वोह आदमी सलाखों को पकड़ कर खड़ा रो रहा था, उस की आँखें रो रो कर सूजी हुई थीं, लगातार बोले जा रहा था, मीना ! तुम कहाँ हो मीना ! मैं वर्षों से तुमारा इंतज़ार कर रहा हूँ मीना ! मैं तेरे बिन रह नहीं सकता, तुम कब आओगी मीना ! , दोस्त ने सवाल किया कि इस को किया हुआ है भाई ? तो उस का दोस्त बोला कि यह किसी मीना नाम की लड़की से पियार करता था लेकिन इस की शादी मीना से हो ना सकी और यह पागल हो गया। यार, यह तो बहुत बुरा हुआ इस के साथ। कुछ आगे गए तो एक कमरे में सलाखों को पकडे एक और आदमी खड़ा था, जिस की आँखें लाल लाल, कपडे फ़टे हुए, सर के बाल बिखरे बिखरे ऊपर की तरफ खड़े, बड़े बड़े नाखून और जब यह दोनों दोस्त उस पिंजरे नुमा कमरे के नज़दीक आये तो वोह शख्स शेर की भाँती टूट पड़ा और सलाखों को पकड़ जोर जोर से दहाड़ा फूँ फूँ फूँ। दोस्त ने पुछा, यार ! इस को किया हुआ तो वोह हंस कर बोला, उसी मीना की शादी इस के साथ हुई थी”, इस पर सभी इतने हंसे यह जोक एक यादगार ही बन गई, इस जोक पर बहुत दिनों तक बातें होती रहीं। आज रात हम सभ ने बहुत एन्जॉय किया। रात काफी हो चुक्की थी, गुजराती कपल उठ कर अपने होटल में चला गया था । याद नहीं कितने बजे हम ऊठे और अपने कमरों में आ गए। हमारे कमरे एक दो मिंट की दूरी पर ही थे। सुबह को कहाँ जाना था, सुबह को ही सोचने की बात करके कमरे में जा कर सो गए।
सुबह उठे, नह धो कर अपने अपने बैग हाथों में लिए कैंटीन में आ गए और दिली वाले शैफ से बिग इंग्लिश ब्रेकफास्ट बनाने को कह दिया। जब तक ब्रेकफास्ट तैयार होता, हम मशवरा करने लगे कि आज हम ने कहाँ जाना था। मशवरा करने वाले मैं और जसवंत ही थे, शेष मैम्बर तो हमारे पीछे आने वाले ही थे। सोच सोच कर फैसला किया कि आज फ्रांसिस एगज़ेविअर चर्च और अगुआडा किला देखेंगे। जसवंत ने उस टैक्सी वाले को मोबाइल किया, जिस ने हमें स्पाइस गार्डन दिखाया था। उस ने आधे घंटे में ही आ जाएगा, बोल दिया। ब्रेकफास्ट तैयार हो गया था और हम इत्मीनान से इंग्लिश ब्रेकफास्ट का मज़ा लेने लगे। पेट पूजा होते ही उठ कर हम बाहर सड़क पर आ गए और टैक्सी वाले की इंतज़ार करने लगे। होटल के बाहर एक छोटी सी दीवार पर सभी बैठ कर टैक्सी वाले का इंतज़ार करने लगे लेकिन मैं और जसवंत यूँ ही सड़क पर दुकानों को देखने लगे। एक जूतों की दूकान पर हम चपलें देखने लगे, तभी टैक्सी वाले का मोबाइल आया कि उस का टायर पंचर हो गया था और वोह कुछ मिंट लेट हो जाएगा। हमें भी तो कोई जल्दी नहीं थी, हम भी मज़े से दुकानों की और जाने लगे। दूसरे सदस्यों को हम ने बता दिया कि टैक्सी ड्राइवर कुछ लेट हो जाएगा, अब सब दुकानों की शोभा बढ़ाने लगे। मैं और जसवंत ने अपने लिए कुछ मोल भाव करके रबड़ की कैंची चपलें लीं। इस में भी एक हंसी वाली बात हुई। दुकानदार बोलने लगा कि उस ने यही चपलें एक अँगरेज़ को चार सौ रूपए में बेचीं थी और हम इंडियन होने की वजह से वोह हमें तीन सौ रूपए की दे देगा और जब शाम को हम घूम घाम के होटल में आये थे तो एक गोरे ने हमारे हाथ में चपलें देख कर पुछा था कि कितने की हम ने खरीदी थीं तो जब हम ने तीन सौ रूपए बताया तो उस ने बताया कि उस ने भी ऐसी चपलें उसी दूकान से तीन सौ रूपए की खरीदी थी। इस पर हम बहुत हंसे थे कि वोह दुकानदार तो बोल रहा था कि हम इंडियन होने की वजह से तीन सौ रूपए की दे रहा था। यह भी एक जोक ही बन गई थी और कुछ देर बाद जब हम इंग्लॅण्ड में थे तो पब में एक गोरे को सुनाई थी, वोह बहुत हंस था।
ज़्यादा इंतज़ार हमें करना नहीं पड़ा, टैक्सी वाले ने हमें हॉर्न दिया और सभी उस की टैक्सी में घुस गए और सुकड़ कर बैठ गए। कहाँ पहले जाएँ, इस सवाल को टैक्सी वाले ने ही बता दिया कि पहले चर्च देखने ही जाएँ क्योंकि वहां इस वक्त लंबी लंबी लाइनें लगी होंगी क्योंकि सेंट एगज़ेविअर का शरीर हर दस साल बाद दिखाया जाता है और हम बहुत लक्की हैं कि इस वक्त यहां हैं। वैसे तो लाइन में दो घण्टे भी लग सकते हैं लेकिन हम में से एक आदमी (तरसेम सिंह ) डिसेबल है, इस लिए हम को प्रायॉरिटी दी जायेगी। ड्राइवर की मान कर हम चर्च को देखने चल पड़े। चलता… … ….