काव्य रचना
कलियुग में रवि सम उदय , जैसे हुआ प्रभात ।
सब अँधियारा मिट गया, भूल गये दिन रात ।
माया गठरी बाँधती , कलियुग करे विलाप ।
मातु मातु कहने लगा , सतयुग करत मिलाप ।
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जिंदगी की हर डगर में चाँद सी मुस्कान हो ।
गीत गाती यामिनी में ,रातरानी शान हो ।
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नोट से चोट जो खाए वही मलाल करते है
जीत ले सीट घरवाले यही बवाल करते हैं
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धनिक हुए कंगाल देख सरकारी माया !
नोट सड़े गोदाम भूल घरवाली छाया !
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मोदी जैसे विज्ञ ने, रचा नया फरमान ।
वोट नोट की खेप में, नहीं खपा श्रीमान ।
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लंबी लाइन बैंक की, देख थके सब लोग ।
संयम थोडा कीजिए, साधन योगा भोग ।
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राज भोग तन मन से त्यागे, दिल में कान्हा बसते ।
विष का प्याला अमिय हुआ जब, मोहन दिल में रमते ।
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ना कहना हर बात सबेरे, प्रियतम प्रियवर हम संग तेरे ।
चाह लिए मधुबाला फिरती , झुलसे साजन हर अंग मेरे ।
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लगा है माघ का मेला , सखे आकर नहा लो तुम ।
बहे गंगा दिखे यमुना अजी संगम नहा लो तुम ।
धुलेंगे पाप सब तेरे हिफ़ाज़त माँ करे गंगा ।
कयामत दौर रुक जाए, नहा लो यार तुम गंगा ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’