ग़ज़ल : खुद को बदनाम
खुद को बदनाम कर रही है वो,
इश्क़ सरेआम कर रही है वो।।
खुद भी राधा कि तरह सजकर के,
मुझको भी श्याम कर रही है वो।।
हिचकियाँ आकर कह रही मुझसे,
याद सुबह शाम कर रही है वो।।
मेरी धड़कनों रुक रुक के चलो,
दिल में आराम कर रही है वो।।
— नीरज पांडेय