कविता

माटी माँ

मेरा है वतन मेरी है चमन
ये माटी मेरी माँ
देख जरा सरहद पे जवान
है बँदूकें ताने बैठा
करो तुम सब सलाम जरा
वो भी है किसी का बेटा
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण
सब कोनों में आगे भारती के
वो रखते अपनी जान
मेरा है वतन मेरी है चमन
ये माटी मेरी माँ
रिश्ते सारे छोड़ के बस
एक ही रिश्ता जाने
कोई नहीं है सगा संबंधी
बस भारती को सर्वस्व माने
दिन-रात रात जाग कर पहरेदारी
बस रहता दुश्मन पर ध्यान
मेरा है वतन मेरी है चमन
ये माटी मेरी माँ
कितनी भाषा कितने लोग
एक माला के हम अनेकों फूल
रंग शक्ल सब अलग-अलग
माथे पर तिलक है एक उसूल
छू नहीं सकता कोई विदेशी
कश्मीर कन्याकुमारी हमारा अभिमान
मेरा है वतन मेरी है चमन
ये माटी मेरी माँ

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733