सितारा
कितना अभागा हूँ,
मैं अम्बर का
इक सितारा हूँ ।
किसे सुनाऊं मनोव्यथा,
हाल हृदय का कैसा है ।
तेरे लिये सितारे तोड़ू…..
प्रेमी प्रियतम से कहता है ।
देख रहे थे
निष्पलक सभी…
इन्तजार था उन्हे,
मेरे टूटने का,
टूटकर गिरने का ।
आज भी याद है मुझे…
मेरे टूटने की चमक
देखी थी उनकी आँखो में,
उनकी खुशी के लिए
कोई टूटे तो टूटे,
क्या फर्क पड़ता है ?
कितने स्वार्थी है लोग…
अपनी खुशी के आगे
उन्हें कुछ नहीं दिखता है ।
क्षणिक आकांक्षाओं
की पूर्ति हेतु,
इन्तजार था उन्हें
मेरे टूटने का,
टूटकर गिरने का ।
मुझे तो टूटना ही था,
मेरी नियति में भी
यही लिखा था ।
टूटकर भी किसी की
ख्वाहिश पूरी करूं
इसी आस के साथ,
ख्वाहिश है मेरी कि
फिर कभी अम्बर का
सितारा ना बनूँ ।।