बाद-ऐ-सबा
वो जो बाद-ऐ-सबा चल रही होगी
उनको छु कर मचल रही होगी
ख्याल-ऐ-वस्ल ही से हाल बुरा है यारों
विसाले-ऐ-वस्ल से तो जाँ निकल रही होगी
ये जो आसमां में सुर्खी है
उनके गालों पे ढल रही होगी
जिन अशारों को होटों से मैंने छेड़ा हैं
उनकी किस्मत बदल रही होगी
गज़लों ने मेरी आग वो लगाई है
जो ‘अजनबी’ सीनो में जल रही होगी
(बाद-ऐ-सबा – सुबह की ठंडी हवा
ख्याल-ऐ-वस्ल – मिलन का विचार (प्रेमी से)
विसाले-ऐ-वस्ल – प्रेमी से मिलन
सुर्खी – लाल रंग
अशारों – शेर )