कविता

खारे होने का सुख

मैं दुखता नासुर हूँ मित्र
रिसती दरारों को न और चटका
अब केवल दर्द सुंकु देता है
मवादों के पोरो को दवा से न बहला

विलाप में उफनता संगीत भी हूँ
सिसकियों के उन्माद का भी आनंद उठा
सर्द कुहासे की सघन यातना हुं
जड़ होने़ से पहले का क्षण देख जा

बांझ चट्टानों की नागफनी ही हुँ
कांटो से बच संभल कर हाथ लगा
तिमिर की काली बदरी हुँ
महसुस कर बरस न पाने की विवशता

नियति से संघर्षरत करुणा सी हुँ
सुन पीड़ा में पाषाण की संवेद कराहना
आँसुओं का उमडंता सैलाब हुँ
कभी गम भारी लगे तो
आ मेरे पास आ मुझमें भीग जा

कहीं न कहीं उलीच देगा
मुसीबतों का सागर हमें
पा लेगें हम भी
खारे हाने का सुख

डॉ हेमलता यादव 

हेमलता यादव

हेमलता यादव शोधार्थी इग्नू मोब. 09312369271 459 सी/ 6 गोविदंपुरी कालकाजी नई दिल्ली 110019