कविता

लहर

तुम्हें लगा
टूट कर बिखर जाँउगी
जिसे थामने के लिए आगे बढ़ोगे तुम
आत्मसंयमित स्वयं को सम्भाले हुए
तुम्हारे ही सामने
कितनी बार बिखरकर
सम्भल गई लहर की तरह
तुम जड़वंत खड़े रहे
जानते थे
मेरे अंदर उमड़ती
समंदर की लहर
के करीब
भी आये तो
निगल जाएगी ये तुम्हें
बिनाशक

डॉ हेमलता यादव 

हेमलता यादव

हेमलता यादव शोधार्थी इग्नू मोब. 09312369271 459 सी/ 6 गोविदंपुरी कालकाजी नई दिल्ली 110019