लघुकथा

ख़ाली कनस्तर

गंगा अपने घर के हालातों से परेशान थी । उसका पति मज़दूरी करता था। पहले कमाई अच्छी होती थी सो गंगा घर में ही रहती थी । पर अब हालात बदल गए थे ।
एक वक़्त की रोटी भी कई बार नसीब नहीं होती थी । गंगा ने अपने पति से कहा , ” सुनो जी ऐसे तो कैसे चलेगा ? अपने साथ अपना मुन्ना भी भूखा रहता है । ”
“हां गंगा , क्या करूँ बहुत कोशिश कर रहा हूँ पर वो मालिक है न वो कहता है जब तक तेरी लुगाई को नहीं लाएगा साथ मेरे बागीचे वाले घर में तब तक तुमको काम पर नहीं रखूँगा । ”
बेबस गंगा खाली कनस्तर लिए बच्चे को गोद में लिए अपने पति के पीछे पीछे चल पड़ी

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377