गज़ल
कोई भी राह जीवन की मेरे तुम तक नहीं जाती,
ना जाने क्यों मगर दीदार की हसरत नहीं जाती,
हैं मजबूर हम दोनों ही अपने दिल के हाथों से,
मेरी उल्फत नहीं जाती तेरी नफरत नहीं जाती,
बहुत से दोस्तों को हो गई है दुश्मनी मुझसे,
सच बोलने की पर मेरी आदत नहीं जाती,
महकना सीख ना पाए गुलों के साथ रहकर भी,
सोहबत के असर से खार की फितरत नहीं जाती,
बचपन से ही पढ़ते आए हैं इंसानियत का पाठ,
तबियत से अपनी क्यों फिर वहशत नहीं जाती,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।