संस्मरण

मेरी कहानी 186

टैक्सी वाले ने जो स्क्रैच कार्ड हम को दिए थे, उन में तरसेम की हौलिडे की लाटरी निकल आई थी। ड्राइवर की टैक्सी में बैठ कर हम उस होटल पर जा पहुंचे। इस होटल के फ्रंट पर बैठने और चाय पीने के लिए कुर्सीआं मेज़ रखे हुए थे लेकिन मेन होटल कुछ चढाई पर था। चढाई चढ़ते चढ़ते हम थक गए। यह होटल तो बहुत ही बड़ा था। टैक्सी वाले के साथ हम होटल में चले गए। टैक्सी वाले ने वोह कार्ड दिखाया और होटल मालक को बताया की तरसेम को हॉलिडे मिली है। उस ने कुछ लड़कियों को हमारे पास भेज दिया। यह लड़कियां गोरी थीं, हो सकता है पुर्तगीज़ लड़कियां हों। वोह हमें हॉलिडे के बारे में समझाने लगीं कि हैलिडे फ्री थी लेकिन किराया अपना देना था। कलंबू की हॉलिडे थी, बहुत से फ़ार्म भरके उस ने तरसेम को दे दिए और साथ ही एक वाउचर पकड़ा दिया कि वाइन की बोतल हम नीचे उसी चाय वाली जगह से ले लें। हॉलिडे के बारे में सोच कर बता देंगे, कह कर हम नीचे उस चाय वाली जगह पर आ गए। वाऊचर दिखा कर वाइन की बोतल हम ले कर टैक्सी वाले के साथ कैलंगूट अपने होटल की तरफ चल पड़े । टैक्सी वाले को होटल की तरफ से ग्राहक लाने के लिए कमीशन मिलना था, इस लिए वोह खुश था, हम खुश थे कि हमें फ्री में वाइन की बोतल मिल गई, हॉलिडे किस ने जाना था ?, कुछ दूर ही किसी और सड़क पर गए तो वहां एक आदमी छलिआं ( भुट्टे ) भून रहा था। यह देख कर हम हैरान हो गए कि गोवा में हरे चने और छलिआं, एक ही मौसम में ! देख कर हमें हैरानी हुई क्योंकि पंजाब में तो गेंहू और मक्की इलग्ग इलग्ग मौसम में होते हैं। इसी से मुझे याद आया कि पुरातन समय में गोवा को गोमांतक क्यों बोलते होंगे। इस के माने थे गाये चराने का देश या उपजाऊ देश, यहां फसलें बहुत हों, यहां घास हो, वहां फसलें तो होंगी ही । शायद इसी लिए एक ही मौसम में हरे चने और छलिआं साथ साथ मिल रही थीं। छै भुट्टे हम ने ले लिए और होटल में आ गए। भुट्टे देख कर सभी औरतें हैरान हो गईं कि एक ही मौसम में दो दो फसलें।
भुट्टे खा कर चाय पी और फिर शाम को बाहर खाने के लिए चल पड़े। एक होटल में खाना खा कर हम वापस आ गए और दूसरे दिन का प्लैन बनाने लगे। दूसरे दिन बुधवार का दिन था और इस दिन अंजुना में बहुत बड़ी मार्किट लगती है। दूसरे दिन भी हम ने टैक्सी ली और अंजुना ओपन मार्किट के नज़दीक आ गए। टैक्सी हमें कुछ दूर खड़ी करनी पडी और हम पैदल ही खेतों में चलने लगे। इन खेतों से गेंहूँ काटी गई दीख रही थी। यहां से ही हमारे साथ एक पंजाबी बज़ुर्ग सिख मिल गया। उस ने बताया कि उस को हर साल इस मौसम में यहां आना पड़ता है क्योंकि इस वक्त पंजाब में बहुत ज़्यादा ठंड होती है और वोह दमे का मरीज़ है। कुछ घरों की तरफ इशारा करके उस ने बताया कि वहां वोह एक कमरा किराए पर ले लेता है और अपना खाना खुद ही बनाता है। यहां कमरा बहुत सस्ते में मिल जाता है। अंजुना मार्किट में हम आ गए। खुल्ले आसमान के नीचे यह मार्किट बहुत बड़ी थी और बेचने वालों के तरह तरह की चीज़ों के स्टाल लग्गे हुए थे जिन में कुछ गोरे लोग भी बेच रहे थे। बहुत से कपड़े हम ने बच्चों के लिए और अपने लिए भी खरीदे। यूँ तो ऐसी चीज़ें इंग्लैंड में भी मिल जाती है लेकिन यहां बहुत सस्ती थी क्योंकि हम पाउंड के हिसाब से हिसाब करते थे। जो चीज़ इंग्लैंड में चार पांच पाउंड में मिलती थी, वोह यहां सौ सवा सौ रूपए की मिल जाती थी। इस मार्किट में काफी घूमे। कुछ लड़के यहां छोटे छोटे ढोल बेच रहे थे। हम उन से मोल भाव करने लगे तो कुलवंत कहने लगी कि ढोल ले जाने की हमें खामखाह दिक्कत होगी, सो हम ने रहने दिया। अब सभी को भूख लगी हुई थी। खाने पीने के लिए एक जगह हमे मिल गई। यहां बाहर ही तरपाल के नीचे कुर्सियां मेज लगे हुए थे। काफी लोग बैठे खा पी रहे थे। काफी देर हम यहां बैठे रहे और फिर बाहर घूमने लगे। एक जगह थक कर हम तींन तो जमीन पर ही बैठ गए लेकिन औरतें आर्टिफिशल जीऊलरी खरीदने के लिए स्टालों के चक्कर लगाने लगीं। अचानक मेरे कंधे पर जोर से हाथ लगा और साथ ही ” राजा पूछे बोलूं किया ” के लफ्ज़ सुनाई दिए। पीछे मुड़ कर देखा तो मेरा एक दोस्त हंस रहा था। यह दोस्त कभी मेरे साथ काम किया करता था और यह जोक एक दफा मैंने दोस्तों की महफल में सुनाई थी। तभी से जब भी यह दोस्त मिलता था तो राजा पूछे बोलूं किया दुहरा और हंस कर मुझे बुलाता था। ” ओए तूँ एथे किदां ?” मैंने उसे पुछा। फिर उस ने बताया कि वोह भी दो हफ्ते के लिए यहां आये थे और सुबह को वापस इंग्लैंड जा रहे थे। कुछ देर हम बातें करते रहे।
अब सब ने मशवरा किया की हम अंजुना बीच पर ही सारा दिन गुज़ारें। टैक्सी वाले को बता दिया कि हमें बीच पर छोड़ कर चला जाए और जब हम ने वहां से होटल को जाना होगा बता देंगे। कुछ मिनटों में ही हम बीच पर पहुँच गए और टैक्सी वाला चला गया। बीच पर बहुत दुकानें थीं और आगे किसी गोवा के मंत्री या प्रधान मंत्री का बुत्त लगा हुआ था, याद नहीं किस का था। आगे बीच पर जाने के लिए सीडीआं थीं। सीडीआं उत्तर कर हम बीच पे आ गए। यहां आज बहुत रौनक थी क्योंकि आज अंजुना में मार्किट डे भी होता है। लोकल लोग भी यहां आते होंगे क्योंकि हर बीच एक शहर सा ही है। टैक्सी वाले ने बताया था कि गोवा में तीस से भी ज़्यादा बीच हैं लेकिन ज़्यादा प्रसिद्ध दस या गयारह हैं। यह बीच हमें कैलंगूट बीच से भी ज़्यादा अच्छा लगा क्योंकि यह बहुत खुल्ला एरिया था। हर तरफ रेत ही रेत थी। रेत पैरों को बहुत अछि महसूस होती थी, चपलें हम ने उतार ली थीं और हमारे पैर रेत में धंसते जा रहे थे, जिस से मज़ा आता था। डैक चेअऱज़ जाते ही हम ने ले लीं और लेट कर धुप का मज़ा लेने लगे। बीअर और खाने का आर्डर हम ने उस शैक में ही दे दिया था, यहां से डैक चेअऱज़ ली थी। कुछ देर खाते पीते रहे, फिर ताश खेलने के बाद लड़कों से मालश करवाने लगे। मालश करने वाले लड़कों का यह तो रोज़ का काम होता है, इसी वजह से इन की मालश से बहुत आनंद मिलता है। यह आनंद कोई आधा घंटा लेते रहे लेकिन कहते हैं, किस पल क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। अब मेरी ज़िन्दगी का एक ऐसा अधियाये शुरू होने वाला था, जिस का कभी सोचा ही नहीं था !
मालश के बाद उठ कर हम समुन्दर के पानी का मज़ा लेने लगे। हम ने सिर्फ निकरें ही पहन राखी थीं और सारे शरीर नंगे ही थे। तरसेम तो बैठा रहा लेकिन मैं और जसवंत पानी में लहरों का मज़ा लेने लगे। तीनों औरतें भी अपनी अपनी शलवारों को ऊंचा कर के अपने पैर पानी में डाल कर बातें कर रही थीं। मुझे पानी से कभी भी डर नहीं लगा था क्योंकि मैं तो बचपन में ही वेईं (नदी ) और कूंएं में छलांगें लगाया करता था। मैं और जसवंत पानी में कुछ आगे चले गए लेकिन अभी हम इतना भी आगे नहीं गए थे कि हम को एक पानी की बहुत बड़ी पंदरा सोलां फ़ीट ऊंची छल्ल ( लहर )आती दिखाई दी। यह छल इतनी जल्दी आई कि जसवंत तो ऊंची छलांग लगा के बच गया लेकिन मुझे संभलने का मौका ही नहीं मिला। जब यह छल मेरी आँखों के सामने आई तो मुझे उसी क्षण यह अहसास हुआ कि अब मेरी ज़िन्दगी का अंतिम समय आ गया है। छल मेरे ऊपर आते ही मैं पानी में गुम्म हो गया और यह छल कुछ सकिंटों में ही मुझे समुन्दर में घसीट कर ले गई। मेरे मुंह में पानी चला गया और मुझे कुछ भी मालूम नहीं था कि यह किया हो रहा था। कुछ देर बाद, वोही छल ने मुझे वापस बीच पर ऐसे फैंक दिया जैसे किसी ट्रक में से बोरी फैंक दी गई हो। मेरी निक्कर उत्तर गई और मैं नंगा हो गया। मुझे एक ही आवाज़ कुलवंत की सुनाई दे रही थी, ” वे जसवंत ! मामा गया ! वे जसवंत उस को पकड़ “, यह सब कुछ सकिंटों में ही हो गया। मैं पागल सा खड़ा था और कुलवंत ने मेरी निकर जल्दी से मुझे पहनाई। मेरा दायां कन्धा ऐसे लगा जैसे हड्डी टूट गई हो। सारा कन्धा पत्थर सा हो गया। अब मुझे समझ आई और मैं ठीक हूँ, ठीक हूँ बोलने लगा। मेरे इर्द गिर्द सारे इकठे हो गए थे और मैंने बताया कि मेरे कंधे में दर्द हो रही थी। वोही लड़का जिस ने मेरी मालश की थी, कुलवंत ने उसे बुलाया और उसे दुबारा मालश करने को कहा। मैं डैक चेअर पर लेट गया और लड़के को बताया कि कहाँ मालश करनी थी। लड़के ने अछि तरह मेरे कंधे, पीठ और कलाई पर जोर जोर से तेल मालश की। अब मुझे कुछ चैन आया और समान्य हो गया। घबराहट दूर हो गई थी और बैठ कर धुप का आनंद लेने लगे लेकिन मुझे पता था कि मेरा सारा शोल्डर सटिफ्फ़ हो गया था। कोई एक घंटा और बैठ कर हम ने टैक्सी वाले को फोन किया कि वोह आ जाए।
टैक्सी में बैठ कर जब हम वापस होटल को जा रहे थे तो कुलवंत बोले जा रही थी कि आज तो भगवान् ने हाथ दे के रख लिया। टैक्सी ड्राइवर को जब पता चला कि क्या हुआ था तो उस ने बताया कि कैलनगूट और अंजुना बीच पर बहुत मौतें हो चुक्की हैं। अब तक तो मैं बिलकुल समानय ही था लेकिन उस टैक्सी ड्राइवर की बात सुन कर मेरे दिमाग को एक झटका सा लगा और अब मुझे डर महसूस हुआ। शायद यही डर आगे जा के कुछ और बन गया, जिस को बहुत कम लोग जानते हैं। खैर, दर्द तो मेरे हो ही रहा था, जब होटल आये तो मैंने पेन किलर ले लीं और साथ ही कुछ कुछ कलाई को धीरे धीरे घुमाता रहा। कुछ बेसिक दुआइआं तो हर वक्त सफर में हम पास ही रखते थे। कन्धा तो दुखता ही था लेकिन अब बात आई गई हो गई। शाम का भोजन फिर हम ने होटल की कैंटीन में ही लेने का फैसला कर लिया। दो हफ्ते हम गोवा में रहे थे और इस दौरान बिलकुल ही बारिश नहीं हुई थी और मौसम बहुत ही मज़ेदार रहा था। शाम को फिर स्विमिंग पूल के नज़दीक हम ने डेरे ला लिए। जसवंत एक गोरे से बातें कर रहा था जो फैमिली सहत दुधसागर देख कर आया था, बता रहा था कि दुधसागर हम जरूर देखें जो बिलकुल कैनेडा के नायग्रा फाल जैसा है, पहाड़ी के ऊपर से पानी गिरता है। उस ने बस रुट भी बताया कि रेलवे ऊपर पहाड़ी पर जाती है लेकिन चलना बहुत पड़ता है और डिसेबल के लिए बहुत कठिन है। जसवंत ने कहा, ” मामा ! चल अभी कम्पयूटर रूम में चलते हैं “, हम कम्पयूटर रूम में चले गए। जसवंत ने दूधसागर लिखा और सामने सारे सीन दिखाई दे रहे थे। देख कर सोचा कि तरसेम तो बिलकुल जा ही नहीं सकता था और उस की पत्नी के भी घुटने इतने ठीक नहीं थे। हम वापस कैंटीन के पास आ गए और सब को बताया कि जगह तो देखने वाली है लेकिन ऊपर जाना बहुत कठिन है।
बातें कर ही रहे थे कि वोह गुजराती मिआं बीवी फिर आ गए। उन को देख कर सब खुश हो गए। अब हम किंगफिशर पीने लगे और बातें करने लगे। याद नहीं किया किया बातें हुईं। कुछ देर बाद जसवंत बोला,” मामा ! जो तेरा दोस्त आज अंजुना में मिला था, वोह किया बोला था ? राजा पूछे समथिंग। मैंने कहा, ” जसवंत ! वोह जोक नहीं थी, बस ऐसे ही जोक जैसे ही कहानी थी लेकिन तुम को इस की समझ शायद ना आये क्योंकि इस कहानी में रामायण की बातें हैं “, जसवंत ने बोला की कुछ कुछ वोह रामायण के बारे में जानता था। सुनाइये सुनाइये जब शुरू हो ही गई तो मैंने भी कहानी शुरू कर दी। मैंने बोला, ” एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी, जिस के चार बेटे थे जो कोई काम धंदा नहीं करते थे। इसी गाँव का एक शख्स किसी राजे का वज़ीर लगा हुआ था। एक दिन जब वोह गाँव आया तो वोह बुढ़िया उस वजीर की मिन्त बगैरा करने लगी कि उस के किसी बेटे को नौकरी दिलवा दे। वज़ीर को कुछ तरस आया और एक बेटे को कहा कि वोह उस के साथ चले, वोह उस को नौकरी दिलवा देगा। जब वज़ीर लड़के को ले कर वापस महलों में आया तो उस ने उस लड़के को भगवा कपड़े पहना कर गल में बहुत सी मालाएं पहना दी और उस को शाही मंदिर में ले गिया और उसे वहां पढी एक लकड़ी की चौंकी पर बिठा दिया और उस के कान में कहा कि वोह इसी तरह सारा दिन बैठा रहे और मुंह से एक भी शब्द ना बोले। वज़ीर उस को बिठा कर चला गया लेकिन उस लड़के ने मंदिर में देखा, सभी ओर बड़े बड़े विद्वान भगवा कपड़े पहने और हाथों में बड़ी बड़ी किताबें लिए खड़े थे। वोह लड़का उन की ओर देख के घबरा गया कि अगर राजे ने उस को कुछ पुछा तो वोह किया जवाब देगा क्योंकि उस को तो धर्म की कोई बात भी पता नहीं थी । उस के मुंह से निकल गया, ” राजा पूछे बोलूं किया “, बस यह शब्द वोह बार बार बोलने लगा। मंदिर के सभी विद्वान एक दूसरे को देख कर हैरानी में डूब गए। ऐसे ही वोह लड़का सारा महीना हर रोज़ यही उच्चारण मुंह से करता रहा,” राजा पूछे बोलूं किया “. जब इस लड़के की तान्खुआह उस की मां को पहुंची तो माँ का लालच बढ़ गया और उस ने दूसरे लड़के को भी वज़ीर के पास भेज दिया। वज़ीर ने उस लड़के को भी भगवा कपडे पहना दिए और उस को भी उसी मंदिर में उस के भाई के पास बिठा दिया और ना बोलने को कह कर चला गया।
अब इस भाई ने जब अपने भाई को यह बोलते सुना कि राजा पूछे बोलूं किया तो वोह समझ गया कि यह राजे से डरता बोल रहा है। अब उस के मुंह से निकल गया, ” जो हाल तेरा सो मेरा यानी पता मुझ को भी कुछ नहीं “, दोनों भाई बोलने लगे और पंडित हैरान हो रहे थे। अब बुड़ीआ ने तीसरे लड़के को भी भेज दिया। वज़ीर नें उसी तरह उस को भी भाइयों के साथ बिठा दिया। अब इस भाई ने जब भाइयों को बोलते सुना कि राजा पूछे बोलूं किया और जो हाल तेरा सो मेरा तो यह भाई सोचने लगा कि यह नहीं निभेगी, यानी यह काम खराब हो जाएगा। अब उस ने बार बार यहीं बोलना शुरू कर दिया कि यह नहीं निभेगी, यह नहीं निभेगी। आखर में बुढ़िया ने चौथे बेटे को भी भेज दिया। वज़ीर ने इस को भी भगवा कपडे पहना के उस के भाइयों के पास बिठा दिया। जब इस ने देखा कि उस का एक भाई बोल रहा है राजा पूछे बोलूं किया, दूसरा बोलता है, जो हाल तेरा सो मेरा और तीसरा बोलता है, यह नहीं निभेगी, तो अब मैं किया करूँ ?, वोह बोलने लगा, ” नहीं निभेगी तो ना निभे, नहीं निभेगी तो ना निभे “, अब सारे भाई रोज रोज इसी तरह बोलने लगे। मंदिर के सभी पंडितों और विद्वानों ने राजा के पास शकायत की कि वज़ीर, राजा को धोखा दे रहा था और मुर्ख लोगों को भगवा कपडे पहना कर पैसे बना रहा था। राजे ने सुन कर अपनी तलवार खींच ली और वज़ीर को पकड़ कर मंदिर में ले आया और चारों भाइयों की ओर देख कर पूछने लगा कि यह किया बकवास कर रहे हैं, वज़ीर बोला,” महांराज धीरे बोलिये, यह चारों भाई रामायण के एक भाग का जाप कर रहे हैं, पहला भाई बोलता है, ” राजा पूछे बोलूं किया “, यह वाक्यात उस समय का है जब शिरी राम लक्ष्मण और सीता जंगल में रहते थे। एक दिन वहां एक सोने का हिरन कुटिया के पास आ गया, सीता, राम को ज़िद करने लगी कि उसे इस हिरन की मृग शाळा चाहिए, राम जी के समझाने पर जब सीता नहीं मानी तो शिरी राम तीर कमान ले के मृग के पीछे चल पढ़े। राम जी ने हिरन पर निशाना साधा और हिरन गिर गया और गिरते सार ही ऊंची आवाज़ में उस ने बोला, लक्ष्मण ! सीता !, यह सुन कर सीता ने लक्ष्मण को भेजने पर मजबूर कर दिया कि उस का भाई खतरे में था और तब लक्षण को जाना ही पड़ा लेकिन जाते वक्त उस ने लक्ष्मण रेखा खींच दी और शिरी राम के पीछे चले गया लेकिन उस के जाने के बाद रावण सीता को उठा कर ले गया। जब लक्ष्मण ढूंढता हुआ वापस कुटिया में आया तो सीता वहां नहीं थी, अब लक्ष्मण रोने लगा कि जब भैया उन से पूछेंगे कि सीता कहाँ है तो वोह किया जवाब देगा “, वज़ीर राजे को बोला, ” महाराज यह सन्यासी वोह ही बोल रहा है कि राजा पूछे ,बोलूं किया यानी राम चन्दर जी पूछेंगे कि सीता कहाँ है तो लक्ष्मण किया जवाब देगा”
यह दूसरा किया बोल रहा है, राजे ने पुछा। वज़ीर बोला, ” महाराज ! अब सब को मालूम हो गया था कि किया हुआ था, लक्ष्मण एक तरफ ढूंढने चल पढ़ा और शिरी राम जी दुसरी तरफ सीता जी को ढूंढने चले गए, ढूँढ़ते ढूँढ़ते दोनों भाइयों का आमना सामना हो गया, बोलने की हिमत तो दोनों भाइयों में नहीं थी, बस आँखों ही आँखों से एक दूसरे की तरफ देख और खमोश भाषा में एक दूसरे को बोले कि जो हाल तेरा सो मेरा, यानी सीता जी का कोई सुराग नहीं मिला”, और यह तीसरा किया बोल रहा है, राजे ने वज़ीर से सवाल किया। वज़ीर बोला, महांराज ! जब रावण सीता को लंका ले आया तो उस के भाई भवीशन ने रावण को बोला कि, भाई तू इतने बड़े देवते की पत्नी को ले आया, अच्छा नहीं किया, यह नहीं निभेगी, लड़ाई अवश्य होगी और लंका का सर्वनाश हो जाएगा और चौथा भाई जो बोल रहा है कि नहीं निभेगी तो ना निभे, यह रावण के एक और भाई की बात कर रहा है। जब भिविषण बोला था कि यह नहीं निभेगी तो नज़दीक ही मेघनाथ बैठा था, वोह गुस्से में बोल उठा, नहीं निभेगी तो ना निभे यानी वोह लड़ाई के लिए तैयार है। बस महांराज ! यह चारों विद्वान रामायण का जाप कर रहे हैं। राजा बहुत पर्सन हुआ और और चारों भाइयों की तान्खुआह बढ़ाने को बोल दिया।
जब यह कहानी समाप्त हुई तो सभी ने तालियां बजा दीं। वोह गुजराती कप्पल तो बहुत देर तक हंसते रहे। यहां तो यह कहानी मैंने मुक्तसर ही लिखी है लेकिन उस वक्त मैंने इस को मसाले ला ला कर और ऐक्टिंग करके सुनाया था जिस से मुझे सुनाने में भी मज़ा आया था। आखर में जब उठे तो मैने जसवंत को बताया कि यही बात आज अंजुना मार्किट में मेरे दोस्त ने कही थी, ” राजा पूछे बोलूं किया “, हंसते हंसते हम अपने कमरों में सोने के लिए चले गए। चलता. . . . . . . .