आर्य मनीषी दौलत सिंह राणा जी से भेंट एवं चर्चायें
ओ३म्
आज हमने देहरादून के रैफेल होम की कालोनी में निवास करने वाले आर्य मनीषी श्री दौलत सिंह राणा (जन्म 18 मई 1938 ई.) से उनके निवास पर जाकर भेंट की। श्री राणा जी से हमारा परिचय लगभग 30 वर्षों से भी अधिक पुराना है। बचपन में कुष्ठ रोग हो जाने के कारण इस असाध्य रोग का इलाज कराने के लिए आप देहरादून की एक ईसाई संस्था द्वारा संचालित कुष्ठ निवारण चिकित्सालय में आ कर रहे थे। इलाज हुआ और आप रोगमुक्त हो गयेे। उन दिनों इस रोग से एक बार ग्रसित हो जाने पर लोग उसे स्वीकार नहीं करते थे। अतः आपको सारा जीवन एक ईसाई सज्जन मि. चेसायर द्वारा स्थापित संस्था में बिताना पड़ा। यह बता दें कि श्री चेसायर ने द्वितीय विश्व युद्ध में नागासाकी, जापान पर एटम बम्ब गिराया था जिसमें हजारों वा लाखों लोग मरे थे। इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए आपने विश्व के अनेक स्थानों पर निःशुल्क कुष्ठ निवारण चिकित्सालय और अपंगों की देखभाल के लिए केन्द्र खोले जिनकी संख्या आज एक सौ से भी अधिक है। आपके द्वारा स्थापित सभी केन्द्र पूर्ण सफलता के साथ चल रहे हैं। चिकित्सा काल में आपको एक मित्र से ‘मैं कौन हूं, ईश्वर का स्वरूप कैसा है’, जैसे प्रश्न करने पर उन्होंने आपको सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने की प्रेरणा दी थी। आज भी आप उनका उपकार मानते हैं। चिकित्सालय का अपना एक पुस्तकालय था जहां आपको यह पुस्तक मिल गई थी। आपने इसे पढ़ा और उसके बाद अपने मित्र से पूछ कर आर्यसमाज में आने लगे। आर्यसमाजियों की घोर उपेक्षा भी इन्हें आर्यसमाज आने से रोक न सकी। यह बाहर बैठकर ही प्रवचन सुनते और सुने हुए प्रवचनों व सत्यार्थप्रकाश के स्वाध्याय के प्रभाव से ऋषि दयानन्द को इन्होंने अपना आचार्य स्वीकार कर लिया। सन् 1994 में आर्यसमाज, धामावाला, देहरादून के अधिकारी वर्ग में परिवर्तन होने पर आर्य विद्वान श्री अनूप सिंह ने इनको प्रेरित कर आर्यसमाज की वेदी से अनेक बार प्रवचन कराये। समाज के किसी सदस्य को आपकी इस प्रतिभा का ज्ञान नहीं था। हम भी आपको पहली बार सुनकर हतप्रभ हुए थे। फिर तो हमने माह में एक प्रवचन कराना आरम्भ करा दिया था।
इस सम्पर्क व सम्बन्ध से हम आपके निकट आये और तब से यह सम्बन्ध बना हुआ है। सन् 1997 में हिण्डोन सिटी में पं. लेखराम बलिदान शताब्दी समारोह के अवसर पर आप हमारे अनेक मित्रों के साथ वहां गये थे। हमारे निवेदन पर प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी, कैप्टेन देवरत्न आर्य और श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने आपको प्रवचन का समय दिया था। आपने तब वहां अपना संक्षिप्त प्रवचन दिया था। हमें लगता है कि यह घटना आपके जीवन की सबसे प्रमुख घटनाओं में से एक है। आपने इसके बाद रैफेल होम की कालोनी स्थित अपने निवास पर अनेक बार यज्ञों का आयोजन किया जिसमें हमारी मित्र मण्डली वहां उपस्थित होती रही और इस अवसर पर वहां भोजन कर ही विसृजित होते थे। आपने अनेक व्यक्तियों की शुद्धि भी कराई है। पूर्व राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी और पूर्व राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद की धर्मपत्नी बेगम आबिदा अहमद आपकी कुटिया में आकर आपसे मिले हैं। कालोनी में आपकी कुटिया स्वच्छता एवं डेकोरेशन में प्रथम होने के कारण अनेक विदेशी लोग भी समय समय पर यहां आते रहे हैं। राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी एक कार्यक्रम में रैफेल होम आये थे। राणाजी ने तब राष्ट्रपति श्री अबुल कलाम जी पर एक कविता लिखी थी जिसका वाचन आपने उनकी उपस्थिति में किया था। इस कविता को सुनकर राष्ट्रपति जी प्रसन्न हुए और राणा जी के पास जाकर उन्होंने उनकी पीठ थपथपाकर ‘वैल डन राणा जी’ बोला था।
आज राणा जी से आर्यसमाज सहित अनेक राष्ट्रीय मुद्दो पर भी चर्चा हुई। आजकल कुछ लोगों के देश विरोधी आचरण को देखकर राणा जी काफी दुःखी दिखे। सच्ची वैदिक विचारधारा वाले आर्यसमाजी आज देश की राजनीति में किये जाने वाले देश के हितों के विरुद्ध आचरण से दुःखी है। वह कुछ कर तो नहीं सकते, ईश्वर से ही प्रार्थना करते हैं कि व्यक्तिगत स्वार्थों में लगे देश विरोधी लोगों से ईश्वर देश को बचाये जिससे देश की रक्षा हो। आज राणा जी से मिलने पर हमें यह भी ज्ञात हुआ कि विगत एक दो महीनों में वह कई अवसरों पर रूग्ण हुए और उनका चिकित्सकों से उपचार कराया गया है। उनकी पत्नी बहिन उषा देवी जी के पैर में इनफैक्शन हो गया था। वह अपने पति राणा जी की रुग्णावस्था में सेवा में इतनी व्यस्त रहीं कि उन्होंने अपने पैर की उपेक्षा की। उनके बायंे पैर की तीन अंगुलियों को आपरेशन कर काटना पड़ा है। उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। इस समय वह रसोई आदि का कार्य भी नहीं कर पा रही हैं। बहिन जी ने अपनी एक बहिन की एक बेटी को अपने पास रखकर बचपन से उसका पालन किया है। उसे कान्वेंट स्कूल में पढ़ाया है। वह बहुत योग्य बेटी है। सम्प्रति पंजाब नैशनल बैंक में अधिकारी है। कार आदि सुविधा उसके पास है। राणा जी व बहिन उषाजी की चिकित्सा में जी जान से लगी रहती हैं। पत्नी व बेटी की सेवा के कारण ही राणा जी आज संसार में हैं। आज भी वह यह कहकर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहे थे कि जिन हालातों में वह रहे हैं, उसमें 78 वर्ष की आयु बीता डालना कम महत्वपूर्ण नहीं है। आर्यसमाज और देश के अनेक विषयों पर वार्ता कर हम रात्रि 8.00 बजे लौट आये।
राणा जी का जीवन एक ऐसे जुझारू व्यक्ति का जीवन है जिसने जीवन भर विपरीत परिस्थतियों व दुःखों से गुजरते हुए, परिवार व समाज की गहरी उपेक्षा झेलते हुए भी आर्यसमाज और ऋषि दयानन्द को नहीं छोड़ा। हम उनकी ऋषि भक्ति पर गर्व करते हैं। उनके दुःखों का अनुमान हम नहीं लगा सकते। आज जो लोग छोटी छोटी परेशनियों में चिल्लाते हैं, उन्हें इस देशभक्त के दर्शन करने चाहियें। इन्हें देश, समाज, सरकार व किसी व्यक्ति से कोई शिकायत नहीं है। ईश्वर उनको स्वस्थ रखे। वह व उनकी सहधर्मिणी भी स्वस्थ व दीघार्यु हों, यह ईश्वर से कामना है।
–मनमोहन कुमार आर्य