हाइटेक भिखारी
कोई भी व्यक्ति न तो जन्म से भिखारी होता है, न भिखारी बनना चाहता है, फिर भी भिखारियों के चुटकुले और किस्से बहुत प्रसिद्ध हैं. बचपन से एक चुटकुला सुनते आ रहे हैं-
भिखारी- ”माताजी, कुछ खाने को मिल जाएगा.”
माताजी- ”अरे भाई, तुम्हें तो पता है, कि मैं तुम्हारे लिए रोज रोटी पकाकर रखती हूं, फिर भी यह कैसा सवाल करते हो?”
भिखारी- माताजी, आज रोटी से काम नहीं चलेगा, आज तो केक खिलाइए, आज मेरा जन्मदिन है.” वह फ्रिज से केक निकालती है या उसे केक के लिए पैसे देती है.
इस जोक पर हम खूब हंसते थे. फिर कई बार उपदेशकों से सुनने को मिला- ”हमें परमात्मा ने पता नहीं कितनी सुविधाओं से सराबोर कर रखा है, पर हम भीतर झांककर अपने आनंद को परमानंद को ठीक वैसे ही नहीं पहचान पाते, जैसे एक भिखारी ने किया था. उसकी गद्दी के नीचे करोड़ों रुपया रखा था, फिर भी वह भूख से मर गया”.
आज का भिखारी कोई छोटा-मोटा नहीं, बाकायदा हाइटेक भिखारी है. वह अपने साथ ‘कार्ड स्वाइपिंग मशीन’ लेकर चलता है. वह बेचारा-सा मुंह बनाकर बड़ी शिद्दत से भीख मांगता है. नोटबंदी के कारण आजकल लोगों के पास छुट्टा न होने का बहाना भी है और असलियत भी यही है. हाइटेक भिखारी यह सब जानता है. जैसे ही कोई छुट्टे का बहाना देकर उसे टरकाना चाहता है, वह झट से कार्ड स्वाइपिंग मशीन निकालता है. अब तो भिखारी को टरकाने का कोई बहाना ही नहीं बचता है. कार्ड निकालिए, उसकी कार्ड स्वाइपिंग मशीन पर स्वाइप कीजिए, भिखारी से छुटकारा पाइए और आगे बढ़ जाइए.