गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

फुर्सत

उनको फुर्सत ही न थी इस ज़माने से,
कोई बे-करार था उनके करीब आने के

उनकी ही याद में गुम है मेरे ख्वाब-ओ-ख्याल,
अब नहीं रहे हम किसी तौर भी ज़माने के

क्या सितम है अपने हम कतार है वो,
जो बड़े सेठ हुआ करते थे ज़माने के

क्यों ग़म को करें सिर्फ मयकशी से गलत,
और भी रास्ते है इस दिल के संभल जाने के

क्या ज़रूरी है अपना जीतना मुहोबत में,
दर्द की भी बड़ी अज़मत है इस ज़माने में

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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