एक ग़ज़ल
एक ग़ज़ल
कमजोर जो हैं तुम उन्हें बिलकुल सताया ना करो
खेलो हँसो तुम तो किसी को भी रुलाया ना करो |
दो चार दिन यह जिंदगी है मौज मस्ती से रहो
वधु भी किसी की बेटी है उसको जलाया ना करो |
चाहत की ज्वाला प्रेम है इस ज्योत को जलने ही दो
लौ उठना दीपक का सगुन उसको बुझाया ना करो |
अच्छी लगी हर बात जब बोली मधुर वाणी सदा
कड़वी नहीं अच्छी कभी, कड़वी बताया ना करो |
हम मान लेते हैं सभी बातें तुम्हारी किन्तु तुम
आगे अभी ज्यादा कभी मुझको नचाया ना करो |
© कालीपद ‘प्रसाद’