कोटि कोटि नमन माँ को
थपकियाँ दे दे के मुझे , माँ जो सुलाती है
नहीं आने वाली भी , नींद मुझे आ जाती है
माँ का आँचल है तो , रौनके बहारां है
उसी आँचल में मेरी , ममता का सहारा है
परेशानी मेरे दिल की , मुझसे ख़फ़ा हो जाती है …..
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माँ के आगे दुनिया की , हर चीज़ ही बौनी है
माँ है तो कौन – सी चीज़ भला , मुझे खोनी है
माँ के क़दमों में मुझे , जन्नत नज़र आती है …..
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माँ का साया मेरे , संग – संग चला
हरदम
मेरी ज़िंदगी में पड़ा , कोई भी न पेचो – खम
माँ की दुनिया बड़ी , सयानी नज़र आती है …..
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माँ ने मुझको कभी , न जुदा होने दिया
उसकी सीख ने मुझको , न खुदा होने दिया
उसके लब पर सदा , दुआ ही टिक जाती है …..
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ले के आँचल में मुझे , हर पल है सुलाया उसने
कितने ही आये दुख मगर , हर दुख – दर्द मिटाया उसने
माँ तो पग – पग पे मुझे , ख़ुदा ही नज़र आती है …..
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माँ तो एक अज़ूबा है , हर किसी के जीवन का
एक पल भी नहीं देती मुझे , वो अपनी ख़िदमत का
फिर भी हर जगह मुझे , माँ ही नज़र आती है …..
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माँ तो माँ है वो उसके , रूप हैं अनेक ही
हर रूप में उसके इरादे , रहते सदा नेक ही
कभी शेरनी और कभी , बया भी बन जाती है …..
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दिन – रात करे चाकरी , कोल्हू के बैल की तरह
तरोताज़ा रहती वो हर पल , परियों की तरह
फिर भी कभी मुझको वो , थकी न नज़र आती है …..
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पड़ूँ बीमार जो मैं , कुछ भी नहीं भाता उसको
मेरा ही मेरा ग़म , पल – पल है सताता उसको
मुझसे दूर वो , एक पल भी न हो पाती है …..
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न जानूँ उसे मैं , कौन – सा तोहफ़ा दे दूँ
मैं क़दमों में उसके ही , जां अपनी
न्योछावर कर दूँ
सौ बार की ज़िंदगी भी कर्ज़ , उतार न पाती है …..
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कोटि – कोटि नमन माँ को तू , लंबी उमर देना
सारे सुख भगवन तू , मेरी माँ को दे देना
पल भर भी जो जीवन भर चैन न पाती है….
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— रवि रश्मि ‘अनुभूति’