गीतिका/ग़ज़ल

प्रेम

अनजान
एक इंतजार करती
(जिंदगी के आखिरी पलों में है वो उसके प्रेमी को जालिम दुनिया ने मार डाला) प्रेमिका से कहता है”

आने वाले आ जाते हैं,वहम है तुम्हारा।
बेसुध बैठे हो, क्यों इंतजार करते हो ?

नायिका”

मशविरा अच्छा लगा,मगर मेरा विश्वास है।
जान जाओगे तुम भी,गऱ किसी से प्यार करते हो।

अनजान”

ठीक है माना मैंनें, खुद का ख्याल तो करो।
कौन किताबे-ए-इश्क में,जान देना जरूरी है।

नायिका”

इश्क रब है ,खुदा है,साँस के रूकने का खौफ नहीं।
यूँ ही रहना है जिंदादिल,ऐसे होना इश्क की मजबूरी है।

अनजान”

इतना ऐतबार है तुम्हें,ये तो गजब की बात है।
ध्यान रखना जरा,कहीं धोखा ना दे जाये।

नायिका”

इश्क किया है मैंने,कोई सौदा नहीं किया।
साथ दे रही आखिरी साँस,बेशक जान चली जाये।।

अनजान”

कहाँ से पाई ये तालिम,जो फना होने से डरती ना।
सलामत रहो दुआ मेरी,बस वो अब आ जाये।

नायिका”

फरिश्तों के साथ है,मेरा महबूब आ गया है।
गुजारिश है अनजान,दुनिया में बस मोहब्बत रह जाये।

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733