मुक्तक/दोहा

मुक्तक

हमें तो झूठे वादों वाली बातें , बिल्कुल नहीं भातीं
हमें हेरा – फेरी वाली हरकतें बिल्कुल नहीं सुहातीं
तुम ही होगे छल – कपट वाली काली दुनिया के बाशिंदे,
हमें तो बचपन वाली वही नादानियाँ ही हैं सुहातीं l

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’