मुक्तक/दोहा

मुक्तक

संज्ञान से हों सुरभित सभी संचरित साँसों की साँसें
बहुत बारीक़ी से ही जीवन इन साँसों को बाँचे
जिसने इनकी रक्षा कर ली , उनका जीवन फूल गुलाब
बाँट तो दिये हैं प्रभु ने वरना , सबकी उम्र के खाँचे

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’