कविता

वक्त

ये
वक्त किसी का नहीं होता है
वक्त के सब होते हैं
किस पल किसी
समय पता नहीं कब जिंदगी
दामन छोड़ दें और कब
मौत हाथ थाम कर ले जाए
संघर्ष करते रहो तो
वक्त बदल जाये जो
बड़ा ऐंठती थी हवेली एक
चकाचौंध में रहती जगमग हर रोज़
वक्त के फेर में आई जो
आज उजाड़ बियाबान हुई
डर से आस पास की बस्ती भी विरान हुई
वक्त का फेर ही ऐसा होता है
अब हवेली जड़ा ताला
कोशिश कर रहा है
उसके गर्भ में नवस्फुटित
बीज एक पल रहा है
वक्त बदलेगा संघर्ष से ही
और ये संघर्ष जारी है
ताले की तरहा
सभी के जीवन में

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733