ग़ज़ल
कभी उसे रुलाकर, कभी हंसाकर जी लिए,
उसकी नादान शरारतें दिल से लगाकर जी लिए।
उसकी पलकों को लबों से चूमकर,
आँखों में इश्क़ सजाकर जी लिए।
शरारों के साथ खेलना किसे आता था,
मुहब्बत की आग लगाकर जी लिए।
पाबंदी बहुत थी दुनिया के रिवाजों की
कई तोड़कर, कुछ निभाकर जी लिए।
उसके आंसू तेरी पलकों पर ठहरे है ‘दवे’
ज़िंदगी भर वे अश्क़ संभाल कर जी लिए।