गीतिका
एक टुकड़ा धूप का डूबा अगर
एक टुकड़ा रात काली हो गयी
बादलों ने तान दी चादर घनेरी
चाँद की रंगत रूहानी हो गयी
शाम के साये बढ़े दो चार पग
झींगुरों के शोर में डूबा शहर
बेरियों के झुरमुटों के बीच फिर
जुगनुओं की हुक्मरानी हो गयी
मरमरी एहसास देती चाँदनी
मखमली दूब की चादर नयी
रातरानी की महक में डूबकर
झूमती पुरवा सुहानी हो गयी