गीत/नवगीत

पहचान तब बनाना

मेरी चिता के ऊपर पहचान तब बनाना,
जगतारिणी नदी में तब अस्थियां बहाना।
लाखों गये डगर से,
पर मुश्किलें वहीं हैं
बच बच निकल गए सब
काँटे अभी वही हैं।

जो कुछ को चुन सकूँ मैं, दो फूल तब चढ़ाना।

कुछ रात में अभी तक
कुछ का हुआ सवेरा
आँगन में रौशनी है
कोने में है अँधेरा

इस तम को हर सकूँ यदि, दीपक तभी जलाना ।

है देख कर दुःखित मन
पौधे ये सूखे सूखे
कितने सड़क किनारे
हैं नवनिहाल भूखे

कुछ की क्षुधा मिटाऊँ तब भोज तुम कराना

जिसके लिए ये जीवन
संघर्ष ही रहा है
आघात अभावों के
जो मुस्कुरा सहा है

उसकी जो जीत लिख दूँ तब हार तुम चढ़ाना।

प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

नाम-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' जन्मतिथि-08/03/1983 पता- ग्राम सनगाँव पोस्ट बहरामपुर फतेहपुर उत्तर प्रदेश पिन 212622 शिक्षा- स्नातक (जीव विज्ञान) सम्प्रति- टेक्निकल इंचार्ज (एस एन एच ब्लड बैंक फतेहपुर उत्तर प्रदेश लेखन विधा- गीत, ग़ज़ल, लघुकथा, दोहे, हाइकु, इत्यादि। प्रकाशन: कई सहयोगी संकलनों एवं पत्र पत्रिकाओ में। सम्बद्धता: कोषाध्यक्ष अन्वेषी साहित्य संस्थान गतिविधि: विभिन्न मंचों से काव्यपाठ मोबाइल नम्बर एवम् व्हाट्सअप नम्बर: 8896865866 ईमेल : praveenkumar.94@rediffmail.com