जादू
मेले मे हर और चहल पहल थी,सभी अपने बच्चो के साथ मेला देखने आए थे। वहीं मेले मे जादूगर अपने बेटे के साथ जादू का खेल दिखा रहा था। जादूगर का बेटा अभी अपने पापा के साथ नया नया हाथ बंटाने लगा था। कभी कभी कोई चूक हो जाए तो जादूगर हाथ की सफाई से खेल को बचा लेता। सभी मेले का लुत्फ उठा रहे थे, जादू का शौ भी चल रहा था। सभी बच्चे बड़ी उत्सुकता के साथ देख रहे थे। जादूगर आगे भी खेल दिखाता था सभी बहुत आन्ंद उठाते थे,इस बार बेटा भी जादूगर के साथ था। सभी खेलो का मज़ा ले रहे थे सारा हाल तालियों से गूंज रहा था। खेल खत्म होने वाला था आखिर में जो खेल चल रहा था उसमे जादूगर ने अपने बेटे को लिटाकर चाकू से मारना होता है और फिर ज़िन्दा करके दिखाना होता है। बेटे से थोड़ी चूक हो गई वो हाल मे इतनी भीड़ देखकर थोड़ा सा डर गया था और चाकू उसके कंधे को थोड़ा सा लग गया,खून निकलने लगा था पर बेटे ने उफ्फ तक नहीं की,कहीं पापा की बेज्जती न हो जाए। जैसे ही जादूगर ने चादर पर खून के छींटे देखे उसने खेल बंद कर दिया और अपने बेटे को उठाकर गले से लगा लिया। घाव इतना गहरा नहीं था पर जादूगर हैरान था कि बेटा चुप रहा कुछ कहा नहीं कि पापा का जादू का खेल खराब न हो जाए। जादूगर की आँखों में नमी थी उसने खेल की परवाह नहीं की क्योंकि वो पैसे और शौहरत तो कमा सकता था बेटा नहीं और जल्दी से बेटे को डाक्टर के पास ले गया।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !