कविता

गली विरान सी क्यो है

आज गली विरान सी क्यो है
सब यहॉ खामोश क्यो है
सुना सुना लगे सब द्वार
घर मे ही सब कैद क्यो है
बच्चो की टोली भी
अब यहॉ नही दिखती है
बूढो की पंचायती भी
लगता अब नही होती है
खुद खुशी का जश्न मनाते
खुद ही दुख मे झेलते है
सब अपने अपने मे मग्न
नही किसी से मतलब है
बदल गये वो जमाना
बदल गयी सब रीतीयॉ
खुद से ही अब संभालनी है
अपनी सारी जिम्मेवारीयॉ
निकल पडे है अब अकेले
नही किसी का साथ है
ढूँढ लेगे खुद मंजिल
चाहे रास्ता कितना भी कठिन हो|
    निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४