बाल कविता

सरदी आई

सरदी आई सरदी आई
चलो खुब ओढे रजाई
तिलकुट,तिल और लाई
सरदी के है उत्तम मिठाई
मॉ दादी मिलकर बनाती
खाते है हमसब भाई
धूप भी अब कम दिखता है
लगता सूरज भी छुट्टी पर है
जैसे कभी दिखाई देता
सबके सब धूप मे दौड पडते
जब खत्म होती धूप
फिर लौट आते रजाई मे
रंग बिरंग के स्वेटर से
हाट बजार भी सजा हुआ है
इन सब को देख
मन भी लुभाया हुआ है
बस पापा का ईंतजार है
जैसे घर आ जाये पापा
फिर तो इस बार भी
नया स्वेटर होगा मेरे पास|
  निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४