लघुकथा

पुल

”पापा, पहले आप बुआ जी को बहुत प्यार से रक्षा बंधन और भाई दूज पर साल में दो बार बुलाते थे, अब चार साल हो गए हैं, हमने बुआ जी को देखा तक नहीं है, बोलो ना पापा, बुआ जी को कब बुलाएंगे?” जतिन ने मनुहार करते हुए पूछा.
”तू अपनी पढ़ाई में मस्त रहा कर, इधर-उधर की बातों में दिमाग खराब मत किया कर.” पापा ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा.
”पापा, आपने ही तो कहा था- ”रिश्ते खूबसूरत पुल की तरह होते हैं. पुल चलता रहे, तो उसकी खूबसूरती कायम रहती है, वरना……..” जतिन से आगे बोला नहीं गया.
पापा ने उसी समय फोन घुमाकर अपनी बहिन को जल्दी से मायके आने के लिए मनुहार की.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244