कविता

मोहब्बत के काबिल नही

मानती हूँ कि मै
तुम्हारे मोहब्बत के काबिल नही
लेकिन इतना भी नदॉ नही
जो तुम्हारे मन की
बात पढ न सकूँ
खफा हो मुझसे तो भी
कोई फिकर नही मुझे
बस मोहब्बत को बदनाम न करना
ये फिकर है मुझे
क्या सपने बूने थे
मिल कर हमदोनो
सजा कर रखी थी
दिल में कितने अरमान
वो भी आज तार तार हुयें
कैसे भूल गये
वो साथ मे गुजरे वक्त
जो जमाने की नजर मे
आज भी ताजे है
कोई कसर न छोडी
रिश्ते को निभाने मे
सहती रही सभी गिले शिकवे
फिर भी तुम्हे दिलों मे बसायी रही
शायद यही मेरी खता थी|

निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४