कविता

नारी..

नारी के रूप है अनेक
कार्य भी इनका है अनेक
निभाती हर रिश्ते को
आने नही देती
कभी दरार
कभी झुठ कभी सच बोलकर
खुश हमेशा रखती सबको
कभी बेटी बन कर
घर ऑगन को आलोकित करती
जैसे परियों की रानी दिखती
कभी बहन बन
भाई के कलाई पर राखी बॉध
अपना अधिकार बताती
कभी पत्नी बन पति के
सुख दूःख मे साथ देती
और अर्द्धागिनी वो कहलाती
तो कभी बहु बन
सास-ससुर की सेवा करती
कभी मॉ बन
साक्षात देवी के रूप मे
अवतरीत हो
बच्चो का पालनहार बनती
इन भिन्न भिन्न रूपो में
नारी सर्वत्र पूजी जाती
ये मै नही सभी कहते है
धरा की सबसे बडी सौगात है नारी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४